अब जबकि लोक सभा
चुनाव के लिए ईवीएम पर पहला बटन दबने में सिर्फ़ एक महीना बचा है, एक बात साफ होती
जा रही है। इस चुनाव को अमेरिका की तर्ज पर राष्ट्रपति चुनाव जैसा बनाने की बीजेपी
की रणनीति काफी हद तक कामयाब हो गई है। चाहे कांग्रेस जैसा राष्ट्रीय दल हो, या
फिर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दल या फिर आम आदमी पार्टी
जैसे नए दल, सबके निशाने पर नरेंद्र मोदी हैं। बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए इससे
बेहतर हालात नहीं बन सकते थे।
यूपीए सरकार के
कामकाज का दस साल का लेखा-जोखा कहीं पीछे छूटता दिख रहा है। सूचना, खाद्य, शिक्षा
के अधिकार या फिर भूमि अधिग्रहण को लेकर सरकार के ऐतिहासिक फैसले। सामाजिक सुरक्षा
की कई योजनाओं पर उसकी कामयाबी। महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर उसकी
नाकामी, बिगड़े आर्थिक हालात, गिरती विकास दर, बढ़ती बेरोजगारी, फैसले न ले पाने
से पंगु सरकार की बनी छवि, पड़ोसी देशों से खट्टे रिश्ते जैसे तमाम महत्वपूर्ण
मुद्दे पृष्ठभूमि में चले गए लगते हैं। ऐसा लग रहा है चुनाव यूपीए सरकार के दस साल
के प्रदर्शन पर नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के 12 साल के गुजरात में शासन के आधार पर
हो रहा है।
करीब डेढ़ साल पहले
जब बीजेपी में नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी पर चर्चा शुरु हुई थी तब पार्टी के
रणनीतिकारों की सोच यही थी। उन्हें ये अंदाज़ा था कि नरेंद्र मोदी का नाम लेते ही
एक विशेष किस्म का ध्रुवीकरण होने लगता है। चाहे पार्टी के विरोधी इसे सांप्रदायिक
आधार पर ध्रुवीकरण का नाम दें, लेकिन आम लोगों में उन्हें लेकर पसंद या नापसंद बिल्कुल
साफ हो जाती है। जिन्हें फ्लोटिंग वोट कहा जाता है, वैसे मतों की संभावना मोदी के
नाम पर समाप्त हो जाती है। लोग या तो उन्हें वोट देंगे या उनके खिलाफ देंगे। रणनीतिकारों
का ये भी आकलन रहा था कि कुछ क्षेत्रीय दल जो अब तक गैरकांग्रेसवाद के नाम पर
बीजेपी के साथ चले आते थे, कई नए कारणों से बीजेपी के साथ जुड़ने का रास्ता
ढूंढेंगे। ऐसे क्षेत्रीय दल जिन्हें मोदी की हिंदुत्व के पोस्टर बॉय की छवि के
कारण अपने मुस्लिम वोटों के छिटकने का डर रहेगा, वे चुनाव के बाद बीजेपी के साथ
आने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाएंगे। लोक सभा चुनाव को राष्ट्रपति चुनाव जैसा बनाने
से ये फायदा होगा कि बीजेपी मोदी की लोकप्रियता का सीधे-सीधे फायदा उठा सकेगी।
मोदी के नाम से दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में बीजेपी के मत प्रतिशतों में
संभावित वृद्धि के मद्देनज़र पार्टी को वहां नए सहयोगी बना कर अपना जनाधार बढ़ाने
में आसानी होगी। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील यूपी और बिहार जैसे राज्यों में
मोदी के चेहरे को आगे रख हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सकेगा।
बीजेपी के
रणनीतिकारों की ये योजना अभी कम से कम जनमत सर्वेक्षणों और विपक्षी दलों में मचे
हडकंप से तो कामयाब होती दिख रही है। जैसे अगर यूपी की बात करें तो समाजवादी
पार्टी सुप्रीमो अपनी बड़ी रैली उसी दिन करते हैं जिस दिन मोदी की बड़ी रैली होती
है। जबकि मायावती को मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने में भी परहेज़ नहीं रहा। बिहार
में रामविलास पासवान को साथ लेकर बीजेपी ने लालू और नीतीश दोनों के समीकरणों को
बिगाड़ दिया है। लालू का हमला नीतीश के बजाए मोदी पर केंद्रित हो गया है तो वहीं
नीतीश को अपनी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को सार्वजनिक करना पड़ा है ताकि
लोक सभा चुनाव के लिए बिहार के लोगों से वोट मांगने को सही ठहरा सकें।
दक्षिण भारत में भी
कुछ ऐसा ही हुआ है। बीजेपी की ताकत वाले इकलौते राज्य कर्नाटक में मोदी को
प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर पार्टी से अलग हुए बी एस येदुरप्पा और बी श्रीरामुलु
साथ आ गए हैं। वहीं तमिलनाडु में मोदी के नाम पर बीजेपी के वोटों में बढोतरी की संभावना
के मद्देनज़र डीएमडीके, एमडीएमके, पीएमके और बीजेपी का एक बड़ा गठबंधन बनने जा रहा
है जिसका लक्ष्य तीस फीसदी से अधिक वोट हासिल करना है। आंध्र प्रदेश में पूर्व
केंद्रीय मंत्री और एन टी रामाराव की बेटी पुरुंदेश्वरी बीजेपी में शामिल हो गई
हैं। टीडीपी के साथ बीजेपी के तालमेल की संभावना बनी हुई है और टीआरएस ने कांग्रेस
में विलय न करने का फैसला कर बीजेपी के साथ आने का रास्ता खुला रखा है।
ममता बनर्जी,
जयललिता, एम करुणानिधि, नवीन पटनायक जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों को छोड़ उत्तर भारत
के सभी क्षेत्रीय नेता नरेंद्र मोदी के खिलाफ हमले करने में कांग्रेस के साथ हो गए
हैं। राहुल गांधी खुद मोदी पर कुछ नहीं कहते हैं। लेकिन भिवंडी में एक सभा में जिस
तरह से उन्होंने महात्मा गांधी हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार बताया है, उससे
उनकी रणनीति का इशारा भी मिलता है। बीजेपी में मोदी विरोधी दलील देते थे कि मोदी
को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने से चुनाव में सांप्रदायिकता बनाम
धर्मनिरपेक्षता मुद्दा बन जाएगा। राहुल के बयान से कुछ ऐसा ही इशारा मिला है।
इस बीच, आम आदमी
पार्टी ने भी अपना पूरा ध्यान नरेंद्र मोदी पर केंद्रित कर दिया है। अरविंद
केजरीवाल इन दिनों गुजरात के दौरे पर हैं और उन्होंने मोदी से कुछ कड़वे सवाल पूछ
कर मोदी के विकास के दावों पर सवाल उठाए हैं। जिनका जवाब उन्हें नहीं मिला।
कामयाबी हासिल करने
के लिए मोदी की रणनीति यही रही है कि सारे विरोधी इकट्ठे होकर उन पर हमले करें। अब
ऐसा ही हो रहा है। लेकिन उन्हें ये ध्यान रखना होगा कि अब ये लोक सभा चुनाव मोदी
बनाम राहुल नहीं बल्कि ‘मोदी बनाम सब’ का हो गया है और
इसमें नाकामी का मतलब है उनकी व्यक्तिगत हार।
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