परिवर्तन संसार का
नियम है। पेड़ों पर पुराने पत्ते झरते हैं, नए पत्ते आते हैं। जो पुराना हुआ, नया
उसकी जगह लेता है। नया पुराना होता है और फिर कोई नया उसकी जगह लेने आ जाता है।
यही सृष्टि चक्र है। जीवन का सिद्धांत है। परिवर्तन आसान नहीं होता, न ही आसानी से
होता है। परिवर्तन की प्रक्रिया में प्रतिरोध होता है। पुराना आसानी से अपनी जगह
नहीं छोड़ता, नए को आसानी से पुराने की जगह नहीं मिल पाती। इस प्रक्रिया को
संक्रमण काल कह सकते हैं।
भारतीय जनता पार्टी
इसी संक्रमण काल से गुजर रही है। बरसों से अटल-आडवाणी की छाया में रही पार्टी अब
परिवर्तन के लिए तैयार है। पार्टी की कमान दूसरी पीढ़ी के हाथों में देने की
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना सिरे चढ़ने लगी है। नरेंद्र मोदी को
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का मतलब है पार्टी में उनका नंबर एक के
पद पर पहुँचना। राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज जैसे नेता अब मोदी के साथ
के पहले पायदान पर पहुँच गए हैं। लेकिन इस परिवर्तन का भी विरोध हुआ है और अब भी
हो रहा है।
आरएसएस की कोशिश थी
कि इस लोक सभा चुनाव में बुजुर्ग नेता मैदान खाली करें ताकि नए लोगों को हाथ
आज़माने का मौका मिल सके। संघ चाहता था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता नेतृत्व देने के
बजाए मार्गदर्शक की भूमिका निभाएं। इसी लिए प्रस्ताव दिया गया था कि लाल कृष्ण
आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी लोक सभा के बजाए राज्य सभा जाएं। पचहत्तर पार कर चुके
सभी नेताओं को ये प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन शायद संघ को ये कल्पना नहीं रही
होगी कि इस प्रस्ताव का इतना तीखा विरोध होगा।
86 साल के लाल कृष्ण
आडवाणी, 80 साल के मुरली मनोहर जोशी, 79 साल के शांता कुमार, 79 साल के बी सी
खंडूरी, 78 साल के लालजी टंडन। ये तमाम नेता खम ठोक कर मैदान में बने हुए हैं। बुजुर्ग
नेताओं को लोक सभा चुनाव के मैदान से हटाने में पार्टी को पहली कामयाबी मध्य
प्रदेश में मिली है। वहां 84 साल के कैलाश जोशी ने काफी मान-मनौव्वल के बाद पार्टी
की इस विनती को मान लिया है और सार्वजनिक रूप से एलान किया है कि वो लोक सभा का
चुनाव नहीं लड़ेंगे।
बीजेपी के
उम्मीदवारों की पहली सूची में शांता कुमार का नाम हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा सीट से
घोषित भी हो चुका है। वहीं लाल कृष्ण आडवाणी इस बात पर निराशा जता चुके हैं कि
पहली सूची में उनका नाम नहीं आया। वो सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वो गांधीनगर
से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं।
इसी तरह मुरली मनोहर
जोशी पिछले एक साल से मीडिया में चल रही उन खबरों से परेशान हैं जिनके मुताबिक
नरेंद्र मोदी उनकी सीट बनारस से चुनाव लड़ सकते हैं। आठ मार्च को केंद्रीय चुनाव
समिति की बैठक में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से इन खबरों का खंडन करने
को भी कहा। मगर आरएसएस के दखल के एक दिन बाद तेवर ठंडे हो गए और कहा कि पार्टी का
फैसला मानेंगे। उन्हें भरोसा दिया गया है कि अगर मोदी बनारस से चुनाव लड़ने का
फैसला करेंगे तो उन्हें कानपुर से टिकट दिया जाएगा।
राजनाथ सिंह
गाजियाबाद छोड़ कर लखनऊ जाना चाहते हैं और इसी बात से वहां के मौजूदा सांसद लालजी
टंडन नाराज हो गए हैं। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ मोदी के लिए सीट छोड़ सकते हैं। राजनाथ
के लखनऊ से लड़ने की संभावना को उन्होंने काल्पनिक कह कर खारिज कर दिया और कहा है
कि उनसे किसी ने इस बारे में बात नहीं की है। हालांकि वो ये भी कहते हैं कि पार्टी
जो तय करेगी, उसे मानेंगे। जबकि तमाम विरोध के बावजूद बीजेपी ने बी सी खंडूरी को
उत्तराखंड से लोक सभा चुनावों में उतारने का मन बनाया है।
जब पार्टी ने फैसला
किया कि बुजुर्ग नेता लोक सभा के चुनाव न लड़ें, तब उनके प्रति अनादर की बात नहीं
रही। बल्कि इसे किसी भी राजनीतिक पार्टी में बदलाव की स्वाभाविक प्रक्रिया के तौर
पर देखा गया। बीजेपी इस चुनाव में बार-बार युवा मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करने
की बात कह रही है। ज़ाहिर है युवा मतदाताओं का रुझान किसी बुजुर्ग उम्मीदवार के
बजाए नए खून की तरफ ज़्यादा होगा। लेकिन अनुभव को नज़रअंदाज़ करना भी किसी पार्टी
की अंदरूनी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। बीजेपी में पिछले एक हफ्ते से चली आ
रही उठा-पटक को देख कर तो यही लगता है।
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