महाराष्ट्र में
बीजेपी अब भी उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच हिचकोले खा रही है। कल मुंबई की एक
होटल में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी और राज ठाकरे की मुलाकात से राज्य
का सियासी माहौल इतना गरमा गया कि उद्धव ठाकरे ने राज्य बीजेपी अध्यक्ष देवेंद्र
फड़नवीस को अपने घर बुला कर उनसे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बारे में पार्टी का
रुख स्पष्ट करने को कहा।
महाराष्ट्र की 48
सीटों में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन इस बार कम से कम 30 सीटें जीतना चाहता है। बीजेपी
ने इसके लिए पहल की है। पार्टी ने राज्य में एक महायुति यानी बड़ा गठबंधन बनाने की
कोशिश की है। इसमें पाँच पार्टियां शामिल हैं। ये हैं बीजेपी, शिवसेना, रामदास
अठवले की आरपीआई (ए), राजू शेट्टी का स्वाभिमान शेटकारी संगठन और महादेव झंकार की
आरएसपी। गठबंधन बनाने के लिए बीजेपी ने कई समझौते किए। उसने रामदास अठवले को राज्य
सभा भी भेज दिया है, अपने जुझारू नेता प्रकाश जावड़ेकर की दावेदारी को नज़रअंदाज़
कर। लेकिन राज ठाकरे के बिना क्या ये वाकई महायुति कहला सकता है?
बीजेपी को लगता है
कि जब तक राज ठाकरे उसके साथ नहीं आते, तब तक कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को धूल चटाने
का उसका सपना पूरा नहीं हो सकता। लेकिन राज को साथ लेने में सबसे बड़ी दिक्कत
उद्धव ठाकरे का विरोध है। बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के
राज ठाकरे के साथ बेहद मित्रतापूर्ण संबंध हैं और ये शिवसेना को रास नहीं आता।
मोदी की उम्मीदवारी को लेकर उद्धव ठाकरे असहज रहे हैं। शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे
ने इसके लिए एक बार सुषमा स्वराज का नाम लिया था। वजह ये बताई गई थी कि वो नहीं
चाहते थे कि महाराष्ट्र में हिंदुत्व के नाम पर चल रही उनकी राजनीति में मोदी दखल
दे। वैसे अब मोदी की उम्मीदवारी को उद्धव का समर्थन है।
2009 के लोक सभा
चुनाव में राज ठाकरे ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को नुकसान पहुँचा कर अपनी ताकत
दिखाई थी। कम से कम दस लोक सभा सीटें ऐसी हैं जहां एमएनएस ने बीजेपी-शिवसेना के
वोट काट कर कांग्रेस या एनसीपी को जीतने में मदद की। उदाहरण के लिए मुंबई दक्षिण
लोक सभा सीट को ही लें। यहां से कांग्रेस-एनसीपी के उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा को
272411 वोट मिले जबकि बीजेपी-शिवसेना के उम्मीदवार मोहन रावले को 146118 वोट।
एमएनएस के उम्मीदवार बाला नंदगांवकर को 159729 वोट मिले। यानी अगर
बीजेपी-शिवसेना-एमएनएस के वोट मिला दिए जाएं तो ये करीब तीन लाख होते हैं। इस
लिहाज़ से मिलिंद देवड़ा ये सीट हार भी सकते थे। लोक सभा चुनाव में राज ठाकरे की
पार्टी का असर मुंबई दक्षिण, मुंबई दक्षिण मध्य, मुंबई उत्तर मध्य, मुंबई उत्तर
पश्चिम मुंबई उत्तर पश्चिम, मुंबई उत्तर, नासिक, भिवंडी, ठाणे और पुणे जैसी सीटों
पर खासतौर से देखने को मिला था।
इन दस सीटों में
एमएनएस को एक लाख से ज़्यादा वोट मिले और ये सारी सीटें बीजेपी-शिवसेना गठबंधन हार
गया। इस लोक सभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 29 फीसदी वोट मिले। लेकिन अगर
राज ठाकरे साथ होते तो ये गठबंधन 33 फीसदी तक पहुँच सकता था। छह महीने बाद हुए
विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने साढ़े चार फीसदी वोट लेकर 13 सीटें
जीतीं।
अब 2009 एक बार फिर
खुद को दोहराने के लिए तैयार दिख रहा है। इस बार बीजेपी-शिवसेना की दिक्कत ये है
कि उनके वोटों में सेंध लगाने के लिए राज ठाकरे के साथ आम आदमी पार्टी भी चुनाव
मैदान में है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे इलाकों
में अरविंद केजरीवाल की पार्टी को ठीक-ठाक वोट मिल सकते हैं। ये वही सीटें हैं
जिन्हें कांग्रेस-एनसीपी से छीने बिना बीजेपी-शिवसेना गठबंधन अपनी ताकत नहीं बढ़ा
पाएगा।
इसीलिए अगर राज
ठाकरे लोक सभा चुनाव न लड़ कर सिर्फ़ मोदी को समर्थन देते भी दिखते हैं, तो
बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को फायदा हो सकता है। लेकिन इसकी कीमत बीजेपी को ही चुकानी
पड़ेगी। विधानसभा चुनाव के लिए राज ठाकरे को 35 से 40 सीटें दी जा सकती हैं। लेकिन
ज़ाहिर है शिवसेना अपने हिस्से से देने के लिए इसके लिए शायद ही तैयार हो। यानी इस
पर भी बीजेपी को ही समझौता करना पड़ सकता है। सवाल ये भी है कि शिवसेना ऐसे किसी
भी समझौते को हरी झंडी देगी या नहीं? उद्धव ने कल जैसे
तीखे तेवर दिखाए हैं उसे देख कर तो यही लगता है कि बीजेपी को इस समझौते तक पहुँचने
में काफी मुश्किलें आ सकती हैं।
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