लोक सभा में विपक्ष
की नेता और बीजेपी की वरिष्ठतम नेताओं में से एक सुषमा स्वराज ने कुछ विवादास्पद
लोगों को साथ जोड़ने की पार्टी की कोशिशों का सार्वजनिक रूप से विरोध किया है।
सुषमा ने ट्विटर के ज़रिए अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि वे
कर्नाटक में श्रीरामुलु की पार्टी बीएसआर कांग्रेस के बीजेपी में विलय या गठबंधन
के खिलाफ हैं। वहीं उन्होंने हरियाणा के कद्दावर कांग्रेसी नेता और मुख्यमंत्री
भूपेंदर सिंह हुडा के बेहद खास विनोद शर्मा को बीजेपी की सहयोगी पार्टी हरियाणा
जनहित कांग्रेस में शामिल होने का भी विरोध किया है।
सुषमा स्वराज ने ये
भी बताया है कि श्रीरामुलु की पार्टी के विलय के विरोध में उन्होंने पार्टी
अध्यक्ष राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है। वे ये भी चाहती हैं कि अगर उनके विरोध को
दरकिनार कर श्रीरामुलु की पार्टी का बीजेपी में विलय होता है तो उनके विरोध को भी
सार्वजनिक किया जाए। जो कि अब खुद उन्होंने ही सार्वजनिक कर भी दिया है।
बीजेपी में सुषमा के
इस कदम से हैरानी है। पार्टी नेताओं को ये समझ नहीं आया है कि सुषमा स्वराज ने
अपनी बातें पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक संस्था संसदीय बोर्ड में रखने के बजाए सार्वजनिक
रूप से क्यों कहीं? ये कहा जा रहा है कि विनोद शर्मा को लेकर पार्टी
के विरोध को हरियाणा जनहित कांग्रेस के नेता कुलदीप विश्नोई को बता दिया गया था।
जिसके बाद उन्होंने बृहस्पतिवार को दिल्ली में विनोद शर्मा के साथ होने वाली साझा
प्रेस कांफ्रेंस को रद्द कर दिया था। फिर उसके बाद सुषमा को विनोद शर्मा को लेकर
अपने विरोध को सार्वजनिक करने की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल, बीजेपी में
सब कुछ सामान्य नहीं है। पिछले साल सितंबर में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का
उम्मीदवार घोषित करने के बाद माना गया था कि नेतृत्व का मसला अब हल हो गया है। तब इस
फैसले को लेकर बीजेपी के शीर्षस्थ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राजनाथ सिंह को लिखे
अपने पत्र को सार्वजनिक कर नाराजगी जाहिर कर दी थी। लेकिन धीरे-धीरे उनके तेवरों
में भी नर्मी आती दिखाई दी। हाल ही में दिल्ली के रामलीला मैदान पर पार्टी की
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उन्होंने उम्मीद जताई थी कि मोदी बेहतर प्रधानमंत्री
साबित होंगे। तब ये माना गया कि मोदी की उम्मीदवारी को लेकर उनकी नाराजगी दूर हो
गई है और खुद प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा पर वास्तविकता को देख कर
विराम लग गया है।
पर ऐसा है नहीं।
चाहें आडवाणी हों, मुरली मनोहर जोशी हों या फिर सुषमा स्वराज। लोक सभा चुनावों की
तारीखों के एलान के साथ ही इन नेताओं की नाराजगी अलग-अलग ढंग से बाहर आ रही है।
जहां आडवाणी खुद अपने मुंह से ही गांधीनगर से लोक सभा चुनाव लड़ने की इच्छा जता
चुके हैं, वहीं मुरली मनोहर जोशी के समर्थकों ने नरेंद्र मोदी के बनारस से चुनाव
लड़ने की खबरों के बीच उनके पोस्टर वहां लगवाने शुरू कर दिए हैं। और अब ट्विटर के
माध्यम से सुषमा स्वराज ने अपने विरोध को सार्वजनिक कर दिया है।
विश्लेषकों का मानना
है कि सुषमा की कोशिश दागी नेताओं से खुद को दूर दिखा कर अपनी छवि को दुरुस्त रखने
की है। गौरतलब है कि श्रीरामुलु बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के करीबी हैं। किसी
वक्त ये रेड्डी बंधु सुषमा स्वराज के करीबी माने जाते थे। लेकिन जनार्दन रेड्डी पर
अवैध खनन के आरोप लगने और सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी के बाद से सुषमा ने इनसे
दूरी बनाना शुरू कर दिया। ये माना जा रहा है कि श्रीरामुलु के बीजेपी में विलय का
मतलब होगा रेड्डी बंधुओं की बीजेपी में वापसी। सुषमा स्वराज को लगता है कि अगर ऐसा
होगा तो पार्टी में उनके विरोधी ये आरोप लगा सकते हैं कि उन्हीं की वजह से रेड्डी
बधुओं की पार्टी में वापसी हुई है। इसीलिए श्रीरामुलु के विरोध को सार्वजनिक कर
उन्होंने ये बात रिकार्ड पर रख दी है कि वे दागी रेडडी बंधुओं के खिलाफ हैं। यही
किस्सा विनोद शर्मा का भी है जिनके बेटे मनु शर्मा को मॉडल जेसिका लाल की हत्या
में उम्र कैद की सज़ा हुई है। विनोद शर्मा हरियाणा के ताकतवर ब्राह्रण नेता हैं और
हुडा की अल्पमत की सरकार को बहुमत में बदलने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। विनोद
शर्मा के करीबी हरियाणा में प्रचार कर रहे थे कि सुषमा की वजह से विनोद शर्मा
बीजेपी या उसकी सहयोगी पार्टी से जुड़ने जा रहे हैं और इसका पर्दाफाश करने के लिए
ही सुषमा को अपना विरोध सार्वजनिक करना पड़ा।
बीजेपी में अब भी एक धड़े को ये उम्मीद है कि
अगर पार्टी लोक सभा चुनाव में मोदी की अगुवाई में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई तो
मोदी की जगह किसी और के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो सकता है। इसी उम्मीद
के चलते लाल कृष्ण आडवाणी आरएसएस के न चाहने के बावजूद लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए
न सिर्फ इच्छुक हैं बल्कि अपनी इच्छा सार्वजनिक कर पार्टी पर दबाव भी बना रहे हैं।
दिलचस्प बात ये है कि 2009 के लोक सभा चुनाव में एनडीए के प्रधानमंत्री पद के
उम्मीदवार घोषित होने से पहले तक आडवाणी कहते रहे थे कि ब्रिटिश संसद की परंपरा के
मुताबिक लोक सभा में विपक्ष का नेता पीएम इन वेटिंग होता है। लेकिन दिसंबर 2009
में सुषमा स्वराज के लोक सभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद से पिछले पाँच साल में
आडवाणी ने एक बार भी ये बात नहीं कही है और न ही सार्वजनिक रूप से खुद को
प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर किया है।
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