जसवंत सिंह बगावत कर
चुके हैं। राजस्थान के बाड़मेर से उन्होंने बीजेपी के अधिकृत प्रत्याक्षी कर्नल
सोनाराम चौधरी के खिलाफ पर्चा भर दिया है। बीजेपी अभी छोड़ी नहीं है। इस इंतज़ार
में हैं कि पार्टी उन्हें निकाले। उधर, बीजेपी इस इंतज़ार में है कि नामांकन वापस
लेने की आखिरी तारीख और समय निकले। उसके बाद ही उन्हें पार्टी से निकाला जाए।
जसवंत सिंह को लेकर
राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने बयान दिए हैं। राजनाथ सिंह ने कहा कि
जसवंत पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन उन्हें टिकट न देने का फैसला बताते समय
उनसे खेद व्यक्त किया था। जेटली कह चुके हैं कि पार्टी में नेताओं को ‘नहीं’ सुनने की आदत डालनी
होगी। वहीं सुषमा ने कह दिया है कि उन्हें इस फैसले से दुःख है और केंद्रीय चुनाव
समिति की बैठक में ये फैसला नहीं हुआ था।
उधर, जसवंत का
बीजेपी नेताओं पर हमला जारी है। राजनाथ सिंह और वसुंधरा राजे को उन्होंने गद्दार
बताया है। जेटली को महत्वाकांक्षी नेता करार दिया है। जसवंत सिंह पार्टी के
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर हमला करने में भी पीछे नहीं रहे
हैं। बीजेपी में चल रहे नमो-नमो के जाप को उन्होंने आपातकाल की मानसिकता से जोड़ा
है।
जसवंत सिंह ने कहा
है कि “ये जो नमो, नमो निर्णय लेने की प्रक्रिया शुरू
हुई है, ये मुझे 1975 की याद दिलाता है। इसमें अहंकार ज़्यादा है। पार्टी जिस तरह
से एक ही व्यक्ति पर केंद्रित कर रही है ये ठीक नहीं है। प्रजातंत्र में ये काम
नहीं कर सकता।“
ये टिकट न मिलने के
बाद बगावत कर चुके जसवंत सिंह के बोल हैं। जाहिर है उन्हें टिकट न मिलने से पीड़ा
हुई है। यही दर्द इन बयानों के जरिए बाहर निकल रहा है। लेकिन सवाल ये उठता है कि
अगर उन्हें टिकट मिल जाता तो क्या तब भी उनके यही बोल रहते?
शायद नहीं। इसका
इशारा सिटीज़न फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) द्वारा नरेंद्र मोदी की नीतियों पर
जारी पुस्तक ‘मोदीत्व- विकास और आशावाद का मूल मंत्र’ से मिलता है। सिर्फ एक महीने पहले यानी 25 फरवरी
को दिल्ली के चिन्मय मिशन ऑडिटोरियम में जारी इस पुस्तक की भूमिका सुब्रह्रामण्यम
स्वामी, किरण बेदी के साथ जसवंत सिंह ने भी लिखी है। पुस्तक के मुख पृष्ठ पर मोदी
के फोटो के नीचे भूमिका लिखने वालों के नाम लिखे हैं और जसवंत सिंह का नाम सबसे
ऊपर है।
अब ज़रा देखें कि
जसवंत सिंह क्या लिखते हैं?
जसवंत सिंह लिखते हैं 2014 हमारे लिए एक महत्वपूर्ण
वर्ष है- बदलाव का, रूपांतरण का, राजनीतिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के
क्षेत्र में। अंक 14 के भारतीय संस्कृति में रहस्यात्मक महत्व को रेखांकित करते
हुए जसवंत लिखते हैं कि समुद्र मंथन से 14 रत्न निकाले गए, भगवान श्रीराम भी 14
साल के वनवास के बाद अयोध्या आए। इसी तरह 2014 बदलाव का वर्ष होगा, जिसके लिए लंबे
समय से देश आस लगाए बैठा है।
जसवंत सिंह आगे
पुस्तक में उल्लेखित नरेंद्र मोदी के नारों का जिक्र करते हैं जो 14 उद्धरणों से
प्रेरित हैं। जसवंत सिंह लिखते हैं कि “प्रत्येक उद्धरण एक
विचार का प्रतीक है, जिसे अगर सही ढंग से लागू किया जाए तो भारत को बदलने में मदद
मिल सकती है। श्री मोदी ने न सिर्फ इन मुद्दों पर बात की है, उन्होंने गुजरात के
मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान बहुत प्रभावी ढंग से वहां उन्हें
लागू भी किया है।“
यानी जसवंत सिंह को
मोदी के नाम से निकली अवधारणा मोदीत्व से परहेज़ नहीं दिखता है। बल्कि वो इसे भारत
को बदलने में मददगार भी मानते हैं। वही जसवंत सिंह अब शिकायत कर रहे हैं कि बीजेपी
में हो रहा नमो-नमो उन्हें आपातकाल की याद दिला रहा है और पार्टी व्यक्तिकेंद्रित
होती जा रही है।
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