Sunday, March 02, 2014

मोदी और जनरल


पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह शनिवार को बीजेपी में शामिल हो गए। उनके साथ विभिन्न वरिष्ठ पदों पर रहे करीब तीस पूर्व सैन्य अधिकारी भी बीजेपी में आ गए। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने बीजेपी मुख्यालय पर जनरल वी के सिंह और इन तमाम पूर्व सैन्य अधिकारियों को बीजेपी की सदस्यता दी।
बीजेपी ने 2014 का लोक सभा चुनाव जीतने के लिए अपने वोटों को पिछले लोक सभा चुनाव की तुलना में दस फीसदी बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। नरेंद्र मोदी के चेहरे और लोकप्रियता के बावजूद बीजेपी ज़मीनी स्तर पर एक-एक वोट को साथ लेने की कवायद कर रही है। पिछले एक सप्ताह उसने अपने दलित एजेंडे पर काम किया। उत्तर प्रदेश में उदित राज, महाराष्ट्र में रामदास अठवले, बिहार में रामविलास पासवान को साथ लिया है। अब उसने सैनिकों और पूर्व सैनिकों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।
अंदाज़ा है कि पूरे देश में करीब 14 लाख मौजूदा सैनिक और 26 लाख सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उत्तरी भारत में जहां बीजेपी का सीधा कांग्रेस से मुकाबला है, इनकी संख्या काफी अधिक है। खासतौर से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में। परंपरागत रूप से बीजेपी को इनका समर्थन मिलता रहा है। 1999 में करगिल युद्ध के बाद बीजेपी ने इस वर्ग में अपनी पैठ और मजबूत की है।
लेकिन इन वोटों पर कांग्रेस की भी नज़रें हैं। ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस ने पूर्व सैनिकों की लंबे समय से चली आ रही वन रैंक वन पेंशन की मांग को पूरा किया है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इसके लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। कांग्रेस ने इसका श्रेय पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को दिया है। इस फैसले के एलान के बाद कांग्रेस ने कई जगहों पर पूर्व सैनिकों के सम्मेलन कर उनका समर्थन हासिल करने का प्रयास भी किया है।
दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी 2009 से ही इस मुद्दे को उठाती आ रही थी। पार्टी ने इसके लिए कई प्रदर्शन भी किए और संसद में भी ये मांग उठाई। लेकिन अब इसे अपने हाथ से निकलता देख बीजेपी ने सैनिकों को लुभाने के लिए ये दांव चला है। जनरल वीके सिंह को पार्टी में शामिल कराने के कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने कहा भी कि यूपीए ने आधे-अधूरे मन से वन रैंक वन पेंशन का फैसला किया है और इसे एनडीए की सरकार ही लागू करेगी। पार्टी नेताओं के मुताबिक 500 करोड़ रुपए की राशि ऊँट के मुँह में जीरा है और इसे वास्तविकता में लागू करने के लिए कम से कम ढाई हज़ार करोड़ रुपयों की ज़रूरत पड़ेगी।
वैसे बीजेपी में पूर्व सैन्य अधिकारियों के शामिल होने का सिलसिला कोई नई बात नहीं है। जसवंत सिंह से लेकर मेजर जनरल बी सी खंडूरी और ऐसे ही कई पूर्व सैनिक पार्टी और सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। लेकिन एक पूर्व सेना प्रमुख का राजनीति में सक्रिय होना और एक बड़े राजनीतिक दल में शामिल होना एक अनूठी घटना ज़रूर है। इस पर कई सवाल भी खड़े होते हैं।
इससे पहले पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रायचौधरी संसद में पहुँचे थे। वो 1999 में पश्चिम बंगाल से बतौर निर्दलीय राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। बतौर सांसद उन्होंने सेना और रक्षा से जुड़े कई मामलों को राज्य सभा में उठाया था।
लेकिन जनरल वी के सिंह का मामला थोड़ा अलग है। देश के इतिहास में वो पहले सेना प्रमुख हैं जो इस पद पर रहते हुए अपनी जन्मतिथि को लेकर हुए विवाद के बाद सरकार को घसीट कर सुप्रीम कोर्ट ले गए। पद पर रहते हुए आरोप लगाया कि टैट्रा ट्रक सौदे को मंजूरी देने के लिए उन्हें सेना के एक अधिकारी ने घूस देने की कोशिश की और उन्होंने इसकी जानकारी रक्षा मंत्री ए के एंटनी को दे दी थी। उन्होंने रक्षा तैयारियों में कथित खामियों को लेकर प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा जो लीक हो गया। इससे यूपीए सरकार की खासी किरकिरी हुई। सेना प्रमुख पद से रिटायर होने के बाद वो अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए। मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा के बाद रेवाड़ी में हुई पूर्व सैनिकों की रैली में वो उनके मंच पर नज़र आए।
जनरल वी के सिंह ने खुद को सेना प्रमुख रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले और अपने मुद्दों को लेकर सरकार से टकराने वाले जनरल के रूप में पेश किया है। जिस अनुशासन की उम्मीद सैन्य प्रमुखों से रखी जाती है, वो शायद इसकी मिसाल तो नहीं हैं। लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि यूपीए सरकार ने ऐसा हालात पैदा कर दिए कि उन्हें अपनी आवाज़ उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
भारत में सेना का बेहद गौरवशाली इतिहास रहा है। देश में लोकतंत्र की कामयाबी के लिए सेना का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। पड़ोसी देश पाकिस्तान की तुलना में भारत में सेना ने कभी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं किया। ऐसे में एक पूर्व सेना प्रमुख के एक राजनीतिक दल में शामिल होने पर भौहें तनना स्वाभाविक है।

शनिवार को पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की मौजूदगी में जनरल सिंह के समर्थकों के नारे थे- देश का रक्षा मंत्री कैसा हो, जनरल वी के सिंह जैसा हो।

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