कल नरेंद्र मोदी
बरेली की रैली में दो घंटे देर से पहुँचे क्योंकि दिल्ली से उनके हेलीकॉप्टर को
उड़ने की इजाज़त नहीं मिली। बरेली से उनके हेलीकॉप्टर को टेक ऑफ करने के लिए करीब
चालीस मिनट इंतज़ार करना पड़ा और इस वजह से मध्य प्रदेश में उन्हें रैलियों में
पहुँचने में देरी हुई। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी इसी तरह की दिक्कत
आईं। उन्हें चुनावी रैली को संबोधित करने के लिए रायपुर से रायगढ़ जाना था लेकिन
चालीस मिनट तक इंतज़ार करते रहे। बाद
रायगढ़ से जांजगीर जाने में भी उन्हें दिक्कत आई। जबकि हेलीकॉप्टर में आई
खराबी की वजह से राहुल गांधी रांची से गुमला नहीं जा पाए और उन्हें वहां का चुनावी
कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। ममता बनर्जी के हेलीकॉप्टर में भी तकनीकी खराबी आई
जिससे पश्चिमी मिदनापुर में उनके चुनावी कार्यक्रम देर से शुरु हुए।
चुनाव प्रचार के
दौरान नेताओं के लिए बेहद ज़रूरी है हेलीकॉप्टर। एक जगह से दूसरी जगह तुरंत
पहुँचने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। हेलीकॉप्टर की वजह से ही स्टार प्रचारक एक
दिन में छह से आठ तक चुनावी सभाएं कर सकते हैं। विधानसभा चुनावों में इनका ज्यादा
इस्तेमाल होता है क्योंकि वहां बड़े नेताओं को छोटे-छोटे इलाकों में चुनावी सभाओं
के लिए पहुँचना होता है। सड़क के ज़रिए वो एक दिन में इतनी जगहों पर नहीं पहुँच
सकते। हर उम्मीदवार चाहता है कि उसके इलाके में बड़े नेता की सभा हो। ये अलग बात है
कि पुराने दिनों में चंद नेताओं को छोड़ ज्यादातर चुनावी प्रचार के लिए ट्रेन, कार
या फिर ऐसे ही दूसरे साधनों का इस्तेमाल करते थे।
कांग्रेस और बीजेपी
जैसे बड़े राजनीतिक दलों के किराए पर हेलीकॉप्टर देने वाली कंपनियों के साथ अनुबंध
होते हैं। इन कंपनियों से चुनावों से पहले ही करार कर लिया जाता है ताकि जरूरत के
वक्त हेलीकॉप्टर आसानी से मिल सके। लेकिन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल इन दो बड़ी
पार्टियों के नेताओं तक ही सीमित नहीं रहा है। क्षेत्रीय दलों के मुखिया भी चुनाव
प्रचार के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। चुनाव के वक्त हेलीकॉप्टर की मांग बढ़ जाती
है। देश में हेलीकॉप्टरों की संख्या कम है। पहले करीब तीन सौ थे अब ढाई सौ ही रह
गए हैं। इसलिए छह-आठ महीने पहले ही बुकिंग करवा ली जाती है। चुनाव का सीज़न हेलीकॉप्टर
किराए से देने वाली कंपनियों के लिए कमाई का मौका होता है। एक अंदाज़े के मुताबिक
इन कंपनियों की चुनावों के दौरान आमदनी चालीस से पचास करोड़ रुपए तक बढ़ जाती है।
चुनाव प्रचार के
दौरान हेलीकॉप्टर धूल छानते हैं इसीलिए ऑपरेटर किराए में भी बढोत्तरी कर देते हैं।
वीवीआईपी नेताओं के लिए अब दो पायलटों वाले हेलीकॉप्टर में उड़ना अनिवार्य कर दिया
गया है। दोहरे इंजिन वाले हेलीकॉप्टरों की संख्या कम है और मांग ज़्यादा, लिहाज़ा
चुनाव के वक्त इनका किराया भी बढ़ जाता है। एक अनुमान के मुताबिक ऐसे हेलीकॉप्टरों
का किराया दो लाख रुपए से तीन लाख रुपए प्रति घंटे है जो कि सामान्य से तीस से
पचास फीसदी ज्यादा किराया है। जबकि इकलौते इंजन वाले हेलीकॉप्टरों का किराया एक
लाख रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपए प्रति घंटे है।
हेलीकॉप्टरों की
उड़ान के साथ ही उनकी सुरक्षा का बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा होता है। आंध्र
प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्य के बाद
से डीजीसीए और ज्यादा सतर्क हुआ है। इस बार चुनावों के दौरान नेताओं और हेलीकॉप्टरों
की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। डीजीसीए में चुनाव के वक्त हेलीकॉप्टरों की
उड़ानों पर नज़र रखने के लिए और उनकी सुरक्षा जांच पर निगरानी के लिए एक अलग सेल बनाई
गई है। ऑपरेटरों को हर सोमवार डीजीसीए में रिपोर्ट देनी होती है कि कहीं चुनाव
आयोग ने उनकी उड़ानों या यात्रियों को लेकर कोई एतराज तो नहीं किया है।
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