प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू
की किताब से उठा विवाद अभी थमा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के कामकाज पर
गंभीर सवाल उठाती एक और किताब बाज़ार में आ गई है। ये किताब कोयला मंत्रालय में
सचिव रहे पी सी परख ने लिखी है। इस किताब में परख ने अरबों रुपए के कोयला घोटाले
में कई गंभीर सवाल उठाए हैं। ऐन चुनाव के बीच आई ये दूसरी किताब यूपीए सरकार और
कांग्रेस की परेशानियां बढ़ा सकती है क्योंकि बीजेपी बारू की किताब को लेकर पहले
ही सोनिया गांधी पर हमलावर है।
परख की पुस्तक का नाम है ‘क्रूसेडर ऑर
कांस्पिरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रूथ्स’। परख ने इस किताब में लिखा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोयला
खदानों का आवंटन नीलामी के ज़रिए करना चाहते थे। लेकिन इसे प्रधानमंत्री कार्यालय
के ही कुछ अफसरों ने रोका। इसे रोकने में तत्कालीन कोयला मंत्री दसारी नारायण राव
और शिबू सोरेन की भी भूमिका रही। इस बारे में फैसला तब तक रोक कर रखा गया जब तक
परख रिटायर नहीं हो गए। और उसके बाद नीलामी के विचार को ही छोड़ दिया गया।
बारू की किताब की ही तरह परख की किताब भी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उनकी लाचारी के लिए निशाना साधती है। परख ने कहा है
कि जब मंत्री ही प्रधानमंत्री को फैसला लेने से रोके तब ऐसे में प्रधानमंत्री को
तय करना चाहिए था कि वो अपने पद पर बने रहें या फिर इस जिल्लत को बर्दाश्त न करते
हुए अपने पद से इस्तीफा दे दे। परख के मुताबिक जिस सरकार में उनका कोई राजनीतिक
दखल नहीं था उसके मुखिया बने रहने से मनमोहन सिंह की न सिर्फ टूजी और कोयला घोटाले
से छवि खराब हुई बल्कि व्यक्तिगत ईमानदारी का उनका रिकार्ड भी दागदार हो गया।
परख की किताब भी मनमोहन सिंह के अधिकार क्षेत्र
पर सवाल उठाती है। बारू की किताब की ही तरह इसमें भी कहा गया है कि मनमोहन सिंह के
पास अधिकार नहीं था बल्कि सत्ता के सूत्र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों में
रहे। ये वही आरोप हैं जो प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी पिछले कई साल से लगा रही है।
2009 के लोक सभा चुनाव में लाल कृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह के कमज़ोर
प्रधानमंत्री होने का मुद्दा चुनाव में प्रमुखता से उठाया था। लेकिन तब इसे ज़्यादा
तरज़ीह नहीं मिली थी और तब यूपीए की जीत का सेहरा मनमोहन सिंह के सिर ही बांधा गया
था।
कांग्रेस की परेशानी ये है कि बारू और परख दोनों
की किताबों में मनमोहन सिंह की छवि को बचाने और यूपीए की तमाम विफलताओं से उन्हें
दूर करने की कोशिश की गई है। जबकि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की कोशिश है कि
यूपीए दो की असफलताओं की ज़िम्मेदारी मनमोहन सिंह पर डाल दी जाए। बदहाल अर्थ
व्यवस्था, बेलगाम महंगाई और बेकाबू भ्रष्टाचार यूपीए के दूसरे कार्यकाल को सबसे
ज्यादा परेशान करता रहा है। इस लोक सभा चुनाव में ये सब बड़े चुनावी मुद्दे बन कर
उभरे भी हैं।
कांग्रेस ने अभी तक बारू के आरोपों को खारिज किया
है। पार्टी का आरोप है कि बारू बीजेपी के इशारों पर खेल रहे हैं। पार्टी के
प्रवक्ता तो यहां तक कह रहे हैं कि बारू की किताब के पीछे एनडीए के प्रधानमंत्री
पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हैं। लेकिन अब परख की किताब भी एक तरह से बारू के
लगाए आरोपों को ही और आगे लेकर जा रही है। ऐसे में कांग्रेस के लिए इन आरोपों को
सिरे से खारिज करना आसान नहीं होगा।
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