पोस्टर पर मोदी का
ही नाम रहेगा। नारों में भी मोदी ही छाएंगे। प्रचार भी मोदी के इर्द-गिर्द ही
रहेगा। चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ेगी बीजेपी। लेकिन अब केजरीवाल अगर चाहें तो
ऑटो के पीछे लगे पोस्टरों से जगदीश मुखी का रुआंसा चेहरा हटा कर अपने सामने किरण
बेदी का फोटो लगा कर दिल्ली की जनता से पूछ सकते हैं कि वो किसी मुख्यमंत्री के
रूप में देखना चाहेगी? उन्हें या किरण बेदी को?
बीजेपी की यही मंशा
है। किरण बेदी को बिना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए केजरीवाल के हाथों
से ये मुद्दा छीनना कि नरेंद्र मोदी तो मुख्यमंत्री बनेंगे नहीं। अगर बीजेपी को
बहुमत मिलता है तो बेदी सीएम बनेंगी या नहीं ये बाद की बात है। पार्टी इस बारे में
कोई भी फैसला अपनी संख्या देख कर ही करेगी। अगर पूर्ण बहुमत मिलता है तो संभवतः
किरण बेदी के नाम पर विचार हो सकता है नहीं तो बीजेपी के पुराने नेताओं में से भी
किसी को मौका मिल सकता है।
दरअसल, बीजेपी किरण
बेदी को पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भी अपने साथ लाना चाहती थी। लेकिन तब उनकी
अपनी शर्तें थीं जिन्हें लेकर बीजेपी बहुत उत्साहित नहीं हुई। पर पार्टी को ये समझ
में आ गया कि अगर डॉक्टर हर्षवर्धन को इस बार चेहरा नहीं बनाना है तो फिर अरविंद
केजरीवाल की ईमानदार छवि से लड़ने के लिए उसे ऐसे ही लोग चाहिएं जो केजरीवाल को
सामने-सामने जवाब दे सकें। सोच-समझ कर एक के बाद ऐसे लोगों से संपर्क किया गया।
अण्णा हजारे के साथ सक्रिय रहे अश्विनी उपाध्याय को बीजेपी ने साथ लेकर मैदान में
उतारा। प्रेस में वो रोज़ सवाल पूछ कर केजरीवाल पर निशाना साध रहे हैं। शाज़िया
इल्मी को भी इसी रणनीति के तहत साथ लाया जा रहा है।
किरण बेदी, शाज़िया
इल्मी और अश्विनी उपाध्याय को साथ लेने के पीछे मकसद भी यही है। ये दिखाना कि जिस
रास्ते पर अण्णा हजारे चले थे केजरीवाल उससे भटक गए हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर
उनके साथ के ये तमाम लोग बीजेपी के साथ क्यों आ रहे हैं। वो चाहे भ्रष्टाचार का
मुद्दा हो या फिर महिला सुरक्षा या फिर सुशासन, इन तमाम मुद्दों पर किरण बेदी
अरविंद केजरीवाल के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकती हैं।
पर ये तय है कि
बीजेपी अभी किरण बेदी को लेकर सस्पेंस बना कर रखना चाहती है। पार्टी अध्यक्ष अमित
शाह ने इसका इशारा दिया भी और कहा कि आगे भी खबरें मिलती रहेंगी। लेकिन ये जरूर है
कि अगर किरण बेदी चुनाव मैदान में उतरती हैं तो इसका सीधा मतलब यही होगा कि वो
बीजेपी की सरकार बनने की सूरत में मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार होंगी। नरेंद्र
मोदी और अमित शाह की जोड़ी राज्यों में मुख्यमंत्रियों बनाने में स्थापित मानदंडों
को तोड़ कर आगे बढ़ रहे हैं। वो चाहे महाराष्ट्र में ब्राह्मण मुख्यमंत्री देना
हो, हरियाणा में गैर जाट या फिर झारखंड में गैर आदिवासी। दिल्ली में भी अगर ऐसा ही
कुछ हो तो हैरानी नहीं होगी।
भाजपा चाहे किरण बेदी जी को सी.एम.उम्मीदवार न भी बनाए किन्तु यह तय है कि आ.आ.पा.को जंग भारी पड़ने वाली है.प्रसिद्ध है कि मोदीजी अपने लक्ष्य को कभी नहीं भूलते और मौका लगते ही प्रतिद्वन्दी को छकाने में कभी नहीं चूकते.बनारसी रंग तो अब रंग लायेगा.
ReplyDeletegood analysis ... i m sure she will be cm candidate. aaj hi ofc main kiran bedi ko logo ne CM announce kar diya jabki amit shah ne ishara kar diya... youth will connect directly to her. huge set back for AK. AAP lost thousands vote today itself. aur abhi toh 3 hafte baaki ha. Love to she he as Delhi CM :)
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण है आपका !
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