मुझे भूमि अधिग्रहण
कानून पर लाए गए अध्यादेश पर एतराज़ है। मुझे पर्यावरण कानूनों में किए जा रहे
बदलाव भी पसंद नहीं हैं। मैं नहीं चाहता कि श्रम कानूनों में बदलाव किए जाएं। मुझे
मेक इन इंडिया अभियान पर बुनियादी आपत्तियां हैं। बीमा क्षेत्र में सुधारों और
विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने पर मेरा विरोध जारी है। मुझे ये पसंद नहीं है कि
सरकार रक्षा और रेल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी निवेश लाए। संसद में
मेरे सांसदों ने इन तमाम फैसलों का जमकर विरोध किया। सरकार को इन तमाम फैसलों को
लागू करने के लिए बिल पास कराने से रोका और मजबूरी में उसे इनके लिए अध्यादेश लाने
पर मजबूर किया।
लेकिन मेरी एक
समस्या है।
मैंने अपने राज्य
में निवेशकों को लुभाने के लिए ग्लोबल इंवेस्टर समिट बुलाई है। मैं चाहता हूं कि
विदेशी निवेशक मेरे राज्य में नए कारखाने, इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में पैसा
लगाएं ताकि मेरे राज्य की आर्थिक तरक्की हो सके। युवाओं को रोजगार मिल सके। सेवा
क्षेत्र का विस्तार हो सके। किसानों को फसलों के लिए नई तकनीक मिल सके। उन्हें
उनकी उपज का सही मूल्य मिल सके। मजदूरों को उनकी मेहनत का सही पारिश्रमिक मिल सके।
उनके काम करने के तौर-तरीकों में सकारात्मक परिवर्तन हो सके।
मैं इस इनवेस्टर
समिट में क्या भाषण दूं?
मेरा भाषण कुछ इस
तरह हो सकता है-
सम्मानीय उद्योगपतियों
और विदेश से पधारे माननीय अतिथिगण। क्रांति की इस धरती पर आपका स्वागत है। मैं
चाहता हूं कि आप सब यहां आएं और विकास की नई इबारत लिखने में हमारा सहयोग करें। आप
जानते हैं कि केंद्र की निरंकुश सरकार किसानों और मजदूरों के खिलाफ काम कर रही है।
उन्होंने किसानों की जमीन हड़पने के लिए पिछली सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून को
सिरे से पलट दिया है। हमारी सरकार इस काले अध्यादेश को अपने यहां लागू नहीं होने
देगी।
आप आएं और यहां उद्योग
लगाएं। लेकिन चूंकि मेरी सरकार किसानों से ज़मीन का अधिग्रहण नहीं करेगी इसलिए मैं
चाहता हूं कि आप अपने साथ ज़मीन भी लाएं। मैं नहीं चाहता हूं कि पुराने श्रम कानून
बदल कर श्रमिकों के हक मारे जाएं लिहाज़ा आप अपने मजदूर भी अपने साथ ही लाएं। मुझे
पर्यावरण की बहुत चिंता है। इसलिए मेरी आपसे अपील है कि आप यहां उद्योग लगाने से
पहले आबो-हवा भी लेकर आएं। मैं नहीं चाहता कि आपके कारखाने के लिए कच्चा माल लाने
और उत्पाद ले जाने के लिए सड़क बनाने के वास्ते किसानों की जमीन हथियाई जाए इसलिए आप
कच्चा माल भी अपने साथ ही लाएं। लेकिन एक बात का खास ध्यान रखें कि जो भी माल आप
यहां काम करके कमाएंगे उस पर पहला हक मेरा होगा।
आप पूछ सकते हैं कि
ये क्या बात हुई? हम ज़मीन अपने साथ कैसे ला सकते हैं? आबो-हवा, मजदूर, कच्चा माल ये सब कैसे साथ ला सकते हैं? ये कैसे हो सकता है कि आपकी कमाई पर पहला हक मेरा होगा? आप ये भी कह सकते हैं कि जहां मेरी सरकार की बड़ी इमारतें बनीं हैं,
मंत्रियों-संत्रियों के रहने के लिए आलीशान बंगले बने हैं क्या वो ज़मीन कभी किसानों
से नहीं ली गई थी। क्या पक्की सड़कें बनेंगी, बड़े राजमार्ग बनेंगे तो राज्य के
लोगों का भला नहीं होगा। अगर कच्चा माल राज्य के ही लोगों से लेंगे तो उन्हें
तरक्की का मौका नहीं मिलेगा? ये कैसे हो सकता है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए
बिना विकास न हो बल्कि ये पूछ सकते हैं कि बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए
संतुलित विकास कैसे हो?
आप कहीं ये न बोल दें
कि जमीन वापस करने का अभियान सरकार से ही क्यों न शुरू किया जाए। क्यों न बड़े
दफ्तरों, बंगलों और दूसरी इमारतों को गिरा कर यहां फिर खेती शुरू की जाए। हम जिन
कारों या दूसरे वाहनों का इस्तेमाल करते हैं वो भी किसी न किसी की जमीन लेकर बनाए गए
किसी कारखाने में ही उत्पादित हुई हैं इसलिए हम इन्हें छोड़ कर पैदल ही चलना शुरू
कर दें। बेहतर जीवन, रोजी-रोटी और सिर पर छत की आस लिए शहरों की ओर आ रहे लोगों को
यहां आने से रोक दें। बढ़ती आबादी के लिए नई बस्तियां बनाने का काम छोड़ दें। लोगों
को बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा मिल सके इसके लिए अस्पताल और नए स्कूल-कालेज बनाने
का काम भी न किया जाए क्योंकि आखिर इस सबके लिए भी तो ज़मीन चाहिए। अब जमीन किसी
कारखाने में तो पैदा हो नहीं सकती तो इसका और क्या उपाय हो सकता है।
लेकिन मुझे इन सब
बातों से फर्क नहीं पड़ता। जब तक मुझे 35-40 फीसदी वोट अपने एजेंडे पर चल कर ही
मिल रहे हैं तो मैं विकास के इस प्रपंच से दूर रहना ही पसंद करूंगा। न तो मुझे और
न ही मेरे लोगों को इन झांसों में डालिए। हम तो विरोध का काला झंडा फहराते रहेंगे।
यहां भी और दिल्ली में भी।
फिर केन्द्र का विरोध कैसे करें?हम तो मोदी जी का विरोध करते ही रहेंगे .यह विकास क्या होता है जी? हम तो किसानों के हित मैं सत्ता भी त्यागने को तैयार हैं यदि आप सब हमें केन्द्र पर काबिज होने का मौका दें.रही विरेध की बात तो हम उनकी हर बात का विरोध करेंगे आपका क्या
ReplyDeleteजाता है जी.
नव वर्ष में लेखन शैली की एक नयी विधा -व्यंग्य से परिचय करा कर अखिलेशजी ने अपनी बहुआयामी प्रतिभा का कुशलतापूर्ण परिचय दिया है ।निश्चित रूप से कटाक्ष ममता जी पे है। अभी तक मै मायावतीजी को सबसे निक्रष्ट महिला प्रशासक मानता था परन्तु ममता बनर्जी ने अकुशल प्रशासन में नए मानदंड स्थापित कर दिए है और उनकी तुलना अगर किसीअकुशल प्रशाशक राजनेता से की जाये तो लालू प्रसाद जी ही ममता के समकक्ष हो सकते हैं. जिनोहने बिहार को अपने कौशल से बुरे प्रशाशित राज्य का पर्यायवाची बना दिया था. २० वि सदी के बिहार का इतिहास -( अपराध ,तुष्टिकरण,और भ्रष्टाचार )आज बंगाल में दोहराया जा रहा है. क्या बंगाल २०१६ में इस कुशाशन से मुक्ति पायेगा ये वहा की जनता की जागरूकता और इच्छाशक्ति पे ही निर्भर है. तब तक हमे ममता को विकास मार्ग प्रतिगामी बनते ही देखते रहना होगा।
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