धरती नाम के गोले पर
नरक काटने के बाद पीके अपने गोले के लिए निकल गया है। हालांकि धरती पर पीके का कहर अब भी
भारत नाम के एक देश पर दिखाई दे रहा है जहां सड़कों पर वानर सेना पीके-पीके चिल्ला
रही है। गेरुए वस्त्र धारण करने वाले और लंबी-लंबी दाढ़ी वाले कुछ भीमकाय महानुभाव
आए-दिन पीके को गरिया रहे हैं। पीके अपने पीछे एक तूफान छोड़ गया। एक जलजला बन कर
आया पीके और उसके चले जाने के बाद भी उसके झटके भारतवासियों को अभी तक लग रहे हैं।
लेकिन पीके जब अपने
गोले पहुंचा तो क्या हुआ? ये बात अधिक समय तक रहस्य नहीं रह सकी। खासतौर
से खोजी पत्रकारिता के इस युग में जहां निराशा में आया कुत्ता तीन बार आत्महत्या
करने की कोशिश करे और टीवी पर ये ब्रेकिंग न्यूज़ बने। ऐसे युग में जहां टीवी का
संपादक ट्रैक सूट में अपने कारोबारी मित्र का फ्रेंडली इंटरव्यू करे और महिला
रिपोर्टर को त्रिशूल के हमले से बने तीन निशानों को दिखाने के लिए ट्रैक सूट उतारकर
पिछवाड़ा दिखाने के लिए उत्साह में आ जाए। जहां महिला रिपोर्टर अपने संपादक को इस
बात के लिए गले लगा ले कि उसका स्टोरी आइडिया मंजूर हो गया हो। आखिर वहां ये खोज
निकालना कौन सी बड़ी बात है कि जब पीके अपने गोले पर वापस पहुंचा तो क्या हुआ?
विश्वस्त सूत्रों के
हवाले से पता चला है कि पीके जैसे ही अपने यान में चढ़ा, उसकी उसके गोले वालों ने
ज़बर्दस्त धुनाई कर दी। पीके को पटक-पटक कर मारा गया। उसके कान ऐंठे गए। एक साथ वाला
तो उसे गिरा कर उसकी पीठ पर सवार हो गया और तब तक पीके पर घूंसे बरसाता रहा जब तक
पीके ने हाथ जोड़ कर अपने जान की खैर नहीं मांगी। पीके गालों पर चिपके भगवान के
स्टिकर दिखा कर उन्हें कहता रहा कि वो चांटे नहीं खा सकता है क्योंकि उसने अपना
सिक्यूरिटी सिस्टम बनाया है लेकिन उसके गोले वालों को न तो ये समझ में आया कि वो
क्या कह रहा है और न ही वो उसकी बात मानने को तैयार हुए।
सूत्रों के मुताबिक
पीके के गोलेवाले उससे इस बात पर खफा थे कि वो मुंह में लाल रंग की कोई चीज़
लगातार चबा रहा था और उसके बाद उसने लाल रंग की लंबी धार अपने मुंह से अंतरिक्ष
यान में छोड़ दी थी। फिर वो यान की दीवार की तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और उसने वहां
वही हरकत की जो लाल किले की दीवार पर खुद को गिरफ्तार कराने के लिए की थी। बीच-बीच
में वो लुल-लुल भी बोलता जा रहा था जिसे समझने के लिए पीके के गोलेवालों को उसका
हाथ पकड़ना पड़ा और उसके बाद उनके सामने पीके की सारी कहानी साफ हुई।
बहरहाल पिटाई और
धुनाई के बाद पीके से गले मिल गिले-शिकवे दूर किए गए। उसके शरीर से चिपकी कुछ
विचित्र चीज़ें यान में ही उतरा ली गईं। पीके ने बताया कि धरती नाम के गोले पर
इन्हें कपड़े कहते हैं। लेकिन गले में टेपरिकार्डर लटका रहा क्योंकि पीके ने कहा
कि ये चीज़ उसके बेहद करीब है। लंबी यात्रा के बाद पीके और उसके साथी अपने घर वापस
पहुंचे। वहां एयरपोर्ट पर पीके का भव्य स्वागत हुआ और उसे जुलुस की शक्ल में घर ले
जाया गया। रास्ते में कई टिपोरी (पीके के गोले पर एक ही देवता है। वो स्थान जहां
उनकी पूजा होती है उसे टिपोरी कहते हैं) आए। जुलुस हर टिपोरी पर रुका जहां पीके ने
दंडवत प्रणाम कर अपने गोले के आराध्य देव को सुरक्षित घर वापस आने के लिए धन्यवाद
दिया।
घर पहुंचते ही पीके
के आधा दर्जन बच्चे उसके पैरों से लिपट गए। पत्नी दीवार की ओट से मंद-मंद मुस्करा
कर पीके का स्वागत कर रही थी। बच्चों का एक ही सवाल था- पापा हमारे लिए क्या लाए।।
पीके के गले में लटके टेपरिकार्डर की तरफ सब अचानक लपके और उससे छेडछाड़ करने लगे।
तब तक बीवी पीके के लाए दोनों संदूकों का पोस्टमार्टम कर चुकी थी। उसमें से दो
छोटे-छोटे डंडों के ढेर सारे पैकेट (जिनके बारे में बाद में समझ में आया कि वो
बैटरी नाम की कोई चीज़ थी) और छोटे-छोटे डिब्बे जिनमें आमने-सामने दो छेद थे (पीके
ने बाद में बताया कि उन्हें टेप कहते हैं) निकाल लिए।
बच्चे टेप रिकार्डर
से खेलने लगे। अचानक एक का हाथ प्ले बटन पर पड़ा और जगत जननी साहनी उर्फ जग्गू की
आवाज़ पूरे घर में गूंजने लगी। देखते ही देखते पीके की बीवी के चेहरे के भाव बदलने
लगे। फिर तो वही हुआ। हर टेप में सिर्फ उसी की आवाज़। पीके की बीवी अब तक रणचंडी
का रूप धर चुकी थी। उसके चेहरे से आग बरस रही थी। उसके हाथ में जो भी आया वो उसने
पीके पर बरसाना शुरू कर दिया। पीके के पास सफाई देने का मौका भी नहीं था। वो कुछ
सुनने को तैयार नहीं थी। पीके अपने घर से जान बचाने के लिए भागा।
भागते-भागते पीके अपने
ठिए पर पहुंच गया। ये वही जगह थी जहां वो अपने मित्रों के साथ बैठ कर गपशप करता था
और सुरुर में आने के लिए सारे मित्र एक खास किस्म के द्रव्य का सेवन करते थे। सारे
मित्र ये जानने के लिए उत्सुक थे कि पीके ने धरती पर क्या गुल खिलाए। पीके विस्तार
से अपनी कहानी बताने लगा....
इसके बाद क्या हुआ
ये जानने के लिए कुछ समय इंतज़ार कीजिए.....
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