क्या बीजेपी की
दिल्ली यूनिट पार्टी की देश भर की सारी यूनिट में सबसे निकम्मी है? मैंने बीजेपी के एक बड़े नेता से कुछ दिनों पहले पूछा। जवाब आया “नहीं। पहले नहीं दूसरे नंबर की। पहले नंबर पर हरियाणा यूनिट है। लेकिन
वहां हमने अपने बूते पर सरकार बना ली जिसके बारे में हम कभी सपने में भी नहीं सोच
सकते थे। इसलिए दिल्ली में स्थानीय कार्यकर्ता या नेता चाहें या न चाहें, दिल्ली
की जनता हमारी सरकार बनवाएगी और वो भी मोदी के नाम पर।“
मोदी के नाम को लेकर
बीजेपी नेतृत्व का यही आत्मविश्वास है जिसने उसे दिल्ली में जोड़-तोड़ की सरकार
बनाने से रोक दिया और उसने राज्य में नए सिरे से चुनाव कराने का फैसला किया। वर्ना
आधा दर्जन विधायकों का इंतज़ाम करना कोई बड़ी बात नहीं थी खासतौर से तब जब केंद्र
में बीजेपी की सरकार बन चुकी थी। इसके लिए बीच में दो-तीन बार तो बात काफी आगे बढ़
भी गई थी। दिल्ली बीजेपी के लिए एक मृगमरीचिका साबित हो रहा है। जहां से पार्टी
1998 में सत्ता से बाहर हुई तो अभी तक वापस नहीं आ पाई है। पार्टी ने तमाम कोशिशें
करके देख लीं। लेकिन सत्ता में नहीं आ पाई।
फिर वैसा ही हो रहा
है। एक बार फिर दिल्ली बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं। इसका
सबूत है बीजेपी के सांसदों की दिल्ली के गली-मोहल्लों में हुई नुक्कड़ सभाएं। इसके
पीछे इरादा था जमीनी कार्यकर्ताओं को गतिशील बनाना। उन्हें चुनाव के लिए तैयार
करना। मगर कार्यकर्ता से लेकर प्रदेश नेतृत्व और सांसदों में भी इसे लेकर उदासीनता
दिखाई दी। कार्यकर्ता नुक्कड़ सभाओं के लिए कई जगहों पर भीड़ नहीं जुटा पाए। प्रदेश
नेतृत्व सांसदों की सभाओं के तालमेल का काम ठीक से नहीं कर पाया। और तीन मंत्रियों
समेत 22 सांसद समय देने के बावजूद सभाओं में नहीं गए। यही हाल रामलीला मैदान पर हुई
नरेंद्र मोदी की सभा का रहा जहां दिल्ली बीजेपी एक लाख लोग जुटाने का लक्ष्य पूरा
नहीं कर सकी।
दिल्ली बीजेपी की
असली समस्या नेतृत्व की है। पार्टी आलाकमान ने यहां सारे मोहरे आज़मा कर देख लिए
मगर उसे संगठन में जान फूंकने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। पंजाबी बनिया नेतृत्व
को बढ़ाने पर पूरबिया कार्यकर्ता नाराज़ होता है मगर वहां आलाकमान को कोई ऐसा नेता
नहीं मिलता जिसे कमान सौंपी जा सके। दिल्ली के मतदाताओं के बदलते स्वरूप और उनकी
आकांक्षाओं को पूरा करने में भी बीजेपी कामयाब नहीं हो सकी है। आलाकमान को ये भरोसा
ही नहीं है कि उसके पास अरविंद केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए कोई चेहरा है। इसलिए
उसने नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
और यही वजह है कि बीजेपी
दिल्ली में लंबे समय बाद कामयाब होने जा रही है। मोदी ने रामलीला मैदान की रैली में
यह कह कर कि ‘जो देश का मूड है वही दिल्ली का मूड है’, दिल्ली के मतदाताओं के सामने साफ विकल्प भी पेश कर दिया है। दिल्ली
में अमूमन यही होता आया है कि यहां के मतदाता, जिनमें बड़ी संख्या
में सरकारी कर्मचारी और मध्य वर्ग के लोग हैं, हमेशा उसी पार्टी को वोट देते हैं
जिसकी केंद्र में सरकार होती है। 1998 में ऐसा नहीं हुआ था क्योंकि तब प्याज़ की
बढ़ी कीमतों से नाराज़ लोगों ने दिल्ली की बीजेपी सरकार के साथ केंद्र की वाजपेयी
सरकार के खिलाफ भी वोट दिया था।
लेकिन इस बार ऐसा
नहीं होगा। दिसंबर 2013 में आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और बीजेपी
बहुमत से दूर रह गई। लेकिन सिर्फ चार महीने बाद दिल्ली की सातों लोक सभा सीटों पर
बीजेपी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की। बीजेपी ने साठ विधानसभा सीटें जीतीं। आम
आदमी पार्टी के वोट ज़रूर बढ़े मगर जो दस सीटें उसने जीतीं उनमें आठ वो थीं जहां कांग्रेस
और दूसरी पार्टियों के विधायक हैं। बीजेपी को विधानसभा में जहां 33 फीसदी वोट मिले
थे वो 13 फीसदी बढ़ कर 46 फीसदी पहुंच गए। आम आदमी पार्टी के वोट 29.49 से बढ़ कर
32.9 हुए जबकि कांग्रेस 24.5 से घट कर 15.1 फीसदी पर रह गई। दिल्ली में लोक सभा के
नतीजे अगर विधानसभा के ठीक उलट आए तो इसकी वजह यही थी कि बीजेपी ने ये चुनाव पूरी
तरह से मोदी के नाम पर और उन्हें प्रधानमंत्री बनवाने के लिए लड़े।
हाल ही में हुए
महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं
कि मोदी का जादू बरकरार है। इन राज्यों में लोक सभा चुनावों की तुलना में विधानसभा
चुनावों में बीजेपी के वोट प्रतिशत और सीटों में गिरावट जरूर आई है मगर विधानसभा
चुनावों में हावी स्थानीlय मुद्दों और ताकतवर उम्मीदवारों के मद्देनजर ऐसा
होता है। इन सभी राज्यों में विपक्ष बिखरा हुआ था। दिल्ली में भी ऐसा ही है। चाहे
कांग्रेस तीसरे पायदान पर खड़ी हो फिर भी वो ऐसी पार्टी नहीं है जिसे पूरी तरह से
नज़रअंदाज़ कर दिल्ली नतीजों का पूर्वानुमान किया जाए और इसीलिए यहां के नतीजों पर
कांग्रेस का प्रदर्शन भी असर डालेगा क्योंकि बीजेपी विरोधी वोट आम आदमी पार्टी और
कांग्रेस में विभाजित होंगे।
दिल्ली को लेकर
बीजेपी की रणनीति का अंदाज़ा किराड़ी सीट से लगाया जा सकता है। बीजेपी के दबदबे
वाली इस सीट पर आम आदमी पार्टी लोक सभा चुनाव में आगे हुई। अनाधिकृत कॉलोनियों को
लेकर बीजेपी ने इसके बाद बड़ा फैसला किया और इस तरह उसकी कोशिश आम आदमी पार्टी के
इस वोट बैंक में भी सेंध लगाने की है।
दिल्ली में बीजेपी
की नैय्या नरेंद्र मोदी पार लगाने जा रहे हैं। पार्टी उन्हीं के नाम पर चुनाव लड़ रही
है तो इसके पीछे वजह भी यही है। बीजेपी को
ये एहसास है कि अगर उसे दिल्ली में सत्ता से वनवास खत्म करना है तो उसे मोदी के
नाम का ही सहारा है।
आ.आ.प. पार्टी तो याचना पक उतर आई है.जिसका अनुमान उस पोस्टर से लगाया जा सकता है,जिसमें उन्होंने"केन्द्र में मोदीजी और दिल्ली में आआप.कान्ग्रेस को किसी से मतलबनहीं है.वह तो किसी भी सूरत में बीजेपी को नहीं चाहती.चाहे इससे दिल्ली फिर राजनैतिक अनिश्चितता में ही क्यों न चली जावे.
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