भर दोपहर, सिर पर
चढ़े सूरज का कहर। कोई छाता लिए, तो कोई सिर पर
कपड़ा डाले हुए। उमस भरी गर्मी से निजात पाने के लिए हर कोई अपने हिसाब से तैयारी
कर आया है। बैरकपुर में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सभा में जुटे लोगों में
सिर्फ मोदी के नाम पर उत्साह है। बीजेपी का झंडा फहराता दिख रहा है। दीवारों पर
हिंदी में लगे चुनावी इश्तहार इशारा कर रहे हैं कि इस इलाके में हिंदी-उर्दू
भाषियों का ज़ोर है। करीब चालीस फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। बड़ी संख्या में
बिहार-झारखंड से आए लोग भी बसे हैं।
लोगों में बीजेपी के
प्रति एक उत्सुकता है। मोदी के नाम का आकर्षण उन्हें इस चिलचिलाती धूप में भी
राजनाथ सिंह की सभाओं में खींच रहा है। लेकिन क्या बीजेपी को सीटें मिलेंगी? इस सवाल पर करीब-करीब सभी का एक जैसा ही जवाब
है- इक्का-दुक्का सीटें जीतने की स्थिति में ही है बीजेपी। हालांकि खुद बीजेपी
नेताओं का दावा है कि दार्जीलिंग के अलावा बीजेपी इस बार स्टार उम्मीदवारों के
बूते कुछ अन्य चुनाव क्षेत्रों में भी बाजी मार सकती है। खासतौर से सुप्रियो
बाबुल, बप्पी लाहिरी और जॉर्ज बेकर पर पार्टी की उम्मीदें टिकी हैं। बीजेपी को
लगता है मोदी का नाम और इन सितारों की चमक शायद उसे फायदा पहुँचाए।
लेकिन बंगाल में ममता
का जादू चल रहा है। परिवर्तन के नाम पर लेफ्ट पार्टियों को दरवाज़ा दिखा कर सरकार
बनाने वाली ममता के तीन साल के काम काज पर चाहे अलग-अलग बातें हो रही हों। पर अभी ये
सबूत नहीं मिलते कि ममता से लोगों का मोह भंग होना शुरू हुआ हो। ममता बंगाल के
विकास के नाम पर चुनाव लड़ रही हैं। मोदी को ‘गुजरात का कसाई’ बोल कर उनकी पार्टी ने खुद को बीजेपी के सामने
खड़ा कर लिया है। बांग्लादेशी घुसपैठियों को खदेड़ने के नरेंद्र मोदी के बयान को
ममता बनर्जी की पार्टी ने उछाल दिया है।
राजनाथ सिंह अपने
भाषणों में मोदी के बयान पर सफाई देते हैं। कहते हैं उनका मतलब अवैध रूप से घुस आए
बांग्लादेशियों के बारे में था। बीजेपी और तृणमूल के बीच हुई बयानों की गर्मी पर
भी राजनाथ पानी डालने की कोशिश करते हैं। उनका कहना है कि अगर दिल्ली में मोदी
सरकार आई तो पश्चिम बंगाल को विशेष पैकेज देने के लिए काम शुरू किया जाएगा। ये
ममता बनर्जी की महत्वपूर्ण मांग है। लेकिन राज्य के विकास के लिए कदम न उठाने के लिए
राजनाथ ममता पर भी निशाना साधते हैं।
ममता को लेकर बीजेपी
की एक दुविधा भी है। इससे पहले ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री
भी रह चुकी हैं। उस सरकार के अपना कार्यकाल पूरा करने में ममता की बड़ी भूमिका भी
रही थी। 16 मई के नतीजों में अगर एनडीए बहुमत से दूर रहता है तो उसे जयललिता, ममता
और नवीन पटनायक से समर्थन की ज़रूरत पड़ सकती है। 2016 में पश्चिम बंगाल में
विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में ये संभावना कम ही है कि ममता खुल कर मोदी
के साथ आएं। लेकिन विशेष पैकेज के नाम पर उनसे शर्तों के आधार पर समर्थन लेने का
विकल्प खुला रखा जा सकता है।
वैसे तो बंगाल में
चार पार्टियों में मुकाबला है। तृणमूल और लेफ्ट परंपरागत विरोधी हैं। कांग्रेस और
बीजेपी भी अपनी ओर से दम मारते रहे हैं। लेकिन मोदी के अभियान और बीजेपी पर तृणमूल
के लगातार हमलों से ऐसा आभास दिया जा रहा है कि जैसे मुकाबला बीजेपी और तृणमूल के
बीच ही हो रहा है। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। ये ज़रूर है कि 2011 की हार से
लेफ्ट फ्रंट अभी तक उबर नहीं पाया है। न ही लोगों में इस लोक सभा चुनाव में उसे
वोट देने के लिए कोई उत्कंठा है।
लेकिन इस चुनाव को तृणमूल
बनाम बीजेपी का मुकाबला बनाना दोनों ही पार्टियों के लिए अनुकूल है। बीजेपी को
लगता है कि पिछले तीन साल में ममता के खिलाफ जो लोग हुए हैं वो बजाए लेफ्ट के उसे
वोट दे सकते हैं। इसीलिए नरेंद्र मोदी के भाषणों में भी लेफ्ट के बजाए ममता पर ही
तीखा निशाना है। एक बीजेपी नेता तो बढ़-चढ़ कर यहां तक कहते हैं कि बंगाल में जो
स्थिति लेफ्ट की थी वो आज ममता की है। और जो ममता की थी वो बीजेपी की है। जबकि
मोदी और बीजेपी पर हमला करने से ममता को अपने मुस्लिम मतदाताओं को साथ लेने में
मदद मिलती है। लेफ्ट के साथ-साथ वो कांग्रेस और बीजेपी पर भी हमला कर ये संदेश देती
हैं कि वो उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहीं। लेफ्ट पार्टियों के नेता इसे
बीजेपी और तृणमूल के बीच नूरा-कुश्ती बताते हैं।
वैसे इस बात पर कई
लोग सहमत हैं कि बीजेपी इस चुनाव में पश्चिम बंगाल में ज़्यादा सीटें चाहे न जीत
पाए लेकिन उसके वोट प्रतिशत में मोदी के नाम पर ज़बर्दस्त इज़ाफा होगा। राम
जन्मभूमि आंदोलन के वक्त बीजेपी को राज्य में 12 फीसदी वोट मिले थे। इस बार ये
आंकड़ा निश्चित रूप से पार होगा। राज्य में बीजेपी का संगठन बेहद कमज़ोर है। यहां
के मारवाड़ी-गुजराती तबके में पार्टी को समर्थन है। इस बार अन्य राज्यों से आए लोगों
में भी मोदी का जादू चलता दिख रहा है। बीजेपी नेता बंगाल के लोगों को याद दिलाते
हैं कि जनसंघ की स्थापना बंगाल के ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी। इसके बावजूद
बंगाल में दादा और दीदी का विकल्प बनने के लिए मोदी को लंबा सफर तय करना है।
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