नरेंद्र मोदी 26 मई
को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। लेकिन उन्होंने काम पहले ही शुरू कर दिया है।
ऐसा शायद पहली बार हुआ है जब किसी नेता ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने और
राष्ट्रपति से सरकार बनाने के लिए निमंत्रण मिलने से पहले ही काम शुरू कर दिया हो।
मोदी कैबिनेट सचिव और गृह सचिव से मिल चुके हैं। खबरों के मुताबिक उन्होंने इन
दोनों ही आला अफसरों को कई महत्वपूर्ण काम करने के लिए कह दिया था। इसी तरह सरकार
के गठन के लेकर भी उन्होंने पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की है।
माना जा रहा है कि
मोदी सरकार देश के इतिहास की सबसे कसी हुई सरकार होगी। एक ऐसी सरकार जिसे न तो
गठबंधन की मजबूरियों के नाम पर मनमाफिक मंत्रालय लेने के सहयोगी दलों के दबाव के
आगे झुकने की मजबूरी है और न ही पार्टी के अंदरूनी समीकरणों में संतुलन बिठाने के
लिए बुजुर्ग नेताओं को एडजस्ट करने का दबाव झेलना है। पचहत्तर पार कर चुके नेताओं
के लिए राजभवनों के दरवाजे खोलने की तैयारी है। खुद मोदी 63 साल के हैं और उनकी सरकार
में एक-दो अपवादों को छोड़ उम्र में उनसे बड़ा कोई नेता शायद ही मंत्री बनाया जाए।
सरकारी खर्चों में
कटौती करने और काम में दक्षता और कुशलता बढ़ाने के लिए मंत्रालयों में कांट-छांट
और उन्हें आपस में मिलाने की सबसे बड़ी कवायद की जा रही है। सूत्रों के मुताबिक
मोदी सरकार के संभावित स्वरूप को लेकर कई महीनों से तैयारियां चल रही हैं। कई
विकसित देशों की सरकारों के मॉडल का अध्ययन किया गया और एक मोटी रिपोर्ट तैयार की
गई है। इसी रिपोर्ट के आधार पर चर्चा चल रही है कि कई गैरज़रूरी मंत्रालयों को
खत्म किया जाएगा। कई मंत्रालयों को आपस में मिला दिया जाएगा और कई मंत्रालयों को
निगमों में तबदील कर दिया जाएगा।
मिसाल के तौर पर गृह
मंत्रालय से आंतरिक सुरक्षा को अलग करने का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव के तहत एक
राज्य मंत्री को आंतरिक सुरक्षा का प्रभार देकर उसे सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के
अधीन कर दिया जाएगा। मोदी सीधे-सीधे आईबी और एनआईए जैसी एजेंसियों के रोज़मर्रा के
कामकाज पर नज़र रख सकेंगे। इसी तरह एक नया इंफ्रास्ट्रक्चर मंत्रालय बनाने का
प्रस्ताव है। जिसमें भूतल परिवहन और जहाजरानी जैसे कई अन्य मंत्रालय मिलाए जा सकते
हैं। इसमें रेल मंत्रालय को भी मिला कर यातायात मंत्रालय बनाने का भी प्रस्ताव था।
लेकिन रेल मंत्रालय के भारी आकार को देखते हुए फिलहाल इसे अलग ही रखने का विचार
है।
पेट्रोलियम और
प्राकृतिक गैस, ऊर्जा, कोयला और गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोत जैसे अलग-अलग मंत्रालयों
को मिला कर ऊर्जा मंत्रालय बनाया जा सकता है। जबकि ग्रामीण विकास और पंचायती राज
मंत्रालयों को एक किया जा सकता है। इसी तरह उद्योग, वाणिज्य, कपड़ा व सूक्ष्म, लघु
व मंझले उद्यम मंत्रालयों को मिला कर एक भारी-भरकम मंत्रालय बनाने का प्रस्ताव है।
कृषि, खाद्य, खाद्य प्रसंस्करण, नागरिक उपभोक्ता और आपूर्ति मंत्रालयों को भी आपस
में मिलाने की योजना है। एक प्रस्ताव ये भी है कि दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी और
सूचना-प्रसारण मंत्रालयों को मिला कर एक नया मंत्रालय बनाया जाए। इसके पीछे सोच ये
है कि जब क्षेत्र एक ही है तो उसे अलग-अलग विभागों में क्यों बांटा जाए।
कई गैर ज़रूरी
मंत्रालयों को खत्म करने का भी प्रस्ताव है। ओवरसीज़ इंडियन जैसे मंत्रालयों की
ज़रूरत महसूस नहीं की जा रही है। एक प्रस्ताव ये भी है कि कई मंत्रालयों को निगमों
में तबदील कर दिया जाए और उनकी ज़िम्मेदारी टैक्नोक्रेट को दे दी जाए। इस तरह छह
महीने के भीतर राज्य सभा या लोक सभा से चुन कर लाने के झंझट से बचा जा सकेगा।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को भी आगे जा कर निगम में बदला जा सकता है। जबकि
नदियों को जोड़ने या उन्हें साफ करने के लिए एक अलग मंत्रालय या निगम बनाने का भी
प्रस्ताव है।
दरअसल, मंत्रालयों
को बांट कर अलग-अलग पोर्टफोलियो बनाने की कवायद गठबंधन की राजनीति और वरिष्ठ
नेताओं को खुश करने की रणनीति के तहत 90 के दशक में बनी अस्थिर सरकारों के दौर से
शुरू हुई थी। किसी को अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि चौरासी के बाद एक ऐसी स्थिर सरकार
बनने जा रही है जो न सिर्फ एक ही पार्टी की है बल्कि उसे सहयोगी दलों के ब्लैक मेल
के आगे भी नहीं झुकना है। मोदी के सामने कोई मजबूरी नहीं है कि रेल या रक्षा जैसे
महत्वपूर्ण मंत्रालय किसी सहयोगी दल को खुश रखने के लिए दे दिए जाएं जैसा कि
वाजपेयी सरकार के वक्त हुआ था। वैसे भी कहा जाता है कि गठबंधन राजनीति का सबसे
बड़ा शिकार कोई मंत्रालय अगर हुआ है तो वह रेल मंत्रालय ही है।
कुल मिलाकर इसी पूरी
कवायद को ‘भूतो न भविष्यति’ के
अंदाज़ में अंजाम दिया जा रहा है। ‘मोदी मीन्स बिज़नेस’ के मंत्र के साथ आने वाले पाँच साल में काम का
खाका तैयार किया जा रहा है। एक ऐसी सरकार की नींव रखी जा रही है जो 21वीं सदी में
भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने के रास्ते पर मजबूती और तीव्र गति से लेकर जाए।
इसीलिए कहा जा रहा है कि 26 तारीख को मंत्रिमंडल में जगह न मिलने से बीजेपी और
सहयोगी दलों के कई नेताओं के चेहरे अगर लटके नज़र आएं तो हैरानी नहीं होगी।
No comments:
Post a Comment