राष्ट्रवादी का कहना है कि चीनी न खाने से आज तक कोई नहीं मरा. हाँ खाने में ज्यादा चीनी और नमक ज़हर के समान है. वो ये भी कहता है कि सौंदर्य प्रसाधन के सामनों के दामों में बढोत्तरी हो रही है इस पर कोई सवाल क्यों नहीं उठाता. सिर्फ़ चीनी की बात ही क्यों करते हो.
राष्ट्रवादी कृषि मंत्री शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का मुख पत्र है. इससे पहले भी वह कई मामलों खासतौर से जब कांग्रेसी पवार की बुराई कर रहे थे, तब उनके बचाव में कड़ी भाषा का इस्तेमाल कर चुका है. तब एनसीपी के लोगों ने कहा कि इस अखबार में प्रकाशित बातों को उनसे न जोड़ा जाए.
अब अगर कांग्रेस संदेश में कुछ छपा हो और उसे कांग्रेस की राय न मानी जाए खासतौर से संपादकीय में तो बहुत मुश्किल हो जाएगी. ऐसे ही कमल संदेश का संपादकीय हो या फिर पांचजन्य का संपादकीय. इन्हें बीजेपी और आरएसएस के विचार ही माने जाएंगे. तो फिर राष्ट्रवादी के विचार एनसीपी के विचार क्यों नहीं.
अब बात चीनी कम खाने की या न खाने की. ये तो बाबा रामदेव से लेकर बड़े से बड़ा डॉक्टर भी कह देगा कि ज्यादा चीनी नहीं खानी चाहिए. हमारे मध्य प्रदेश में न तो बाबा रामदेव की सुनी जाती है और न किसी डॉक्टर की. चाय में चीनी नहीं बल्कि चीनी में चाय होती है. लोग चीनी खा-खा कर डाइबिटीज़ के शिकार भी हो रहे हैं. किसी ज़माने में गुड खाने का चलन था. चाय में भी गुड डाला जाता था. वह इतना हानिकारक नहीं होता था. लेकिन अब सब कुछ चीनी से ही बनता है. घर में वार-त्यौहार पर बनने वाली मिठाइयाँ हों रोज़ पीने के लिए दूध-चाय. चीनी के बिना काम नहीं चलता. और इस बार तो गुड़ ने चीनी को नीचा दिखा दिया. गुड के दाम भी इतने बढ़ गए थे कि थोड़े समय पहले तक चीनी को पिघलाकर गुड़ बनाया जा रहा था.
सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री के दाम भी बढ़ रहे हैं. ये हमारी मूलभूत आवश्यकताओँ में से नहीं है. कम से कम मेरे लिए तो नहीं. नहाने के साबुन, टूथपेस्ट, सिर पर लगाने के तेल, शैंपू वगैरह के दाम न बढ़े तो मेरे जैसे आदमी का काम चल जाएगा. हाँ अगर दूसरी चीज़ों दाम बढ़े तो हमारे घर का बजट फिर बिगड़ सकता है.
लेकिन भाई राष्ट्रवादी. कुछ चीज़ें होती हैं जिन्हें सरकारी भाषा में एसेंशियल कमोडिटीज़ यानी आवश्यक वस्तुयें कहा जाता है. चीनी इसी में आती है. सौंदर्य प्रसाधन नहीं. वैसे अगर पवार साहब की चली तो वो जल्दी ही सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री के दाम बढ़ने की भविष्यवाणी भी कर सकते हैं.
और जो लाखों टन चीनी कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली कंपनियों को बेची जा रही है और जिसकी मांग बढ़ने के कारण (अब गर्मियाँ आ रही हैं तो माँग तो बढ़ेगी ही) और आपूर्ति के पहले से ही कम होने के कारण आने वाले महीनों में हालात और बिगड़ेगे. हाँ, राष्ट्रवादी के संपादक एक दूसरा संपादकीय लिख कर कम से कम अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से चीनी न खाने की अपील कर सकते हैं. या इसे एनसीपी के संविधान में जोड़ा जा सकता है कि एनसीपी का कार्यकर्ता बनने के लिए ज़रूरी है कि आप चीनी न खाते हों और शायद दाल, चावल, गेहूँ, दूध वगैरह कुछ भी नहीं क्योंकि ये सब भी महँगे हो रहे हैं. पता नहीं जीने के लिए इन्हें खाना क्यों ज़रूरी है.
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