सर्राफ़े की गलियाँ, राजबाड़ा का आँगन सब कुछ है. सुबह-सुबह मंदिर की घंटियाँ हैं.सड़कों के किनारे लगे फूलों के ढेर हैं. अगरबत्तियों की खुशबू है. घर के बाहर ताज़ी सब्ज़ियों की आवाज़ लगाते मोबाइल वेजीटेबल शॉपकीपर. जिनके ठेलों पर मंडियों से आए ताज़े टमाटर, मटर, फूलगोभी,कोथमीर वगैरह-वगैरह अपनी खुशबू और ताज़गी से दूर से ही खींचते हैं.नगर सेवाओं के लिए लगी भीड़ और सड़कों पर चलते वक्त कंधे से कंधे टकराते हुए. बाइक चलाते लोग ऐसी सफाई से गाड़ी मोड़ते हैं कि हॉलीवुड का बड़ा से बड़ा स्टंटमैन भी शर्म से लाल हो जाए. लाल बत्तियों पर कारों की भीड़ के बीच दाँतों के बीच फंसे खाने के टुकड़े जैसे साइकल वाले. जो कब कहाँ घूम जाए इसकी भविष्यवाणी बड़े से बड़ा ज्योतिषी भी नहीं कर सकता.
ये मेरा इंदौर है. ये नज़ारे जो ऊपर बयां किए ये पंद्रह साल पहले के भी थे और आज के भी.
लेकिन इंदौर बदल गया है.
सड़कों पर अब फिएट कम और दूसरी बड़ी कंपनियों की बी सी ग्रेड की गाड़ियाँ ज़्यादा दिखती है्ं. एसयूवी का ज़माना आ गया है. अपनी औकात दिखाने के लिए लोग अब बड़ी गाड़ियों में घूमने लगे हैं. सड़कों को चौड़ा कर दिया गया है. लेकिन गाड़ियाँ इनमें नहीं समाती. इसलिए इनके बढ़ते आकार को जगह देने के लिए मोटर साइकल, स्कूटर और साइकल वालों को कभी फुटपाथ पर तो कभी नालियों में घुसना पड़ता है.
और आ गई है मॉल कल्चर. मैं जिस होटल में रूका था वो एक मॉल में बना है. पंद्रह साल पहले उस जगह क्या था मुझे पता नहीं. लेकिन कम से कम कोई मॉल तो नहीं था. मोबाइल का चार्जर खराब हो गया तो इसी मॉल में लेने के लिए जाना पड़ा. सुबह-सुबह ही लड़के-लड़कियों के जोड़े मॉल में अपनी हाज़िरी देने पहुँच गए थे. क्या इंदौर क्या दिल्ली. सारे मॉल की एक जैसी कहानी.
हाँ, लेकिन अब भी प्रेमियों के जोड़े बाइक या स्कूटर पर जोड़े बना कर ही घूमते हैं. जैसे पहले घूमा करते थे. जोड़े मतलब ये नहीं कि प्रेमी बाइक चला रहा है और पीछे बैठी नकाबपोश प्रेमिका का दुपट्टा हवा में लहलहा रहा हो. बल्कि प्रेमी अपनी बाइक पर और प्रेमिका अपने स्कूटर पर. दोनों जोड़े बना कर सड़क पर चलते हैं. फिर कहीं, छप्पन दुकान या किसी मॉल के अगल-बगल में सड़क के किनारे गाड़ियां लगा कर गपशप की फिर निकल लिए जोड़े बना कर अपने-अपने घर.
ये इंदौर है. बदल गया है. लेकिन इसका बदला रंग-ढंग देखना हो तो एबी रोड पर बने बायपास पर जाइए. नई-नई टाउनशिप बन रही हैं. मिल का जो इलाका रात में सुनसान हो जाता था और जहाँ लोग जाने से घबराते थे, अब हॉट प्रापर्टी का ठिकाना है. एक बैडरूम, दो बैडरूम, डुप्ले सब कुछ मिल रहा है. शहर की पहचान बदल गई है. सड़कों पर लगे होर्डिंग में अब प्रापर्टी के विज्ञापन ज्यादा हैं. ये मध्य प्रदेश का एज्यूकेशन हब है. इसलिए पहले की तरह तमाम तरह की शिक्षा जिसमें कंप्यूटर, ज्योतिष, व्यक्तित्व निखारने से लेकर टीवी एंकरिंग के होर्डिंग भी दिख जाते हैं. लेकिन प्रापर्टी के विज्ञापनों ने सबको ढंक लिया है.
बड़े-बड़े चौराहे, लाल बत्तियों पर रुकते लोग, चौड़ी पक्की और मज़बूत सड़कें. अब गाड़ियों में चलते वक्त ज़्यादा दचके नहीं लगते. वाकई बदल गया है इंदौर.
लेकिन लोगों की गर्मजोशी पहले की तरह बरकरार है. हर कोई तपाक से मिलता है. प्रेम से बात करता है. दिल्ली की तरह तू-तड़ाक नहीं बल्कि पुलिसवाला भी आदर से बात करेगा. साब-साब से नीचे कोई बात नहीं. 'यार अपन तो इंदोरी है' कहने वालों की कमी नहीं. हर कोई हर तरह से मदद करने को तैयार. पोहे-जलेबी, दाल-बाफले की पेशकश करने वाले मिल जाएंगे. शहर के लोगों की प्रोफाइल चाहे बदली हो. अब बाहर से ज्यादा लोग आ रहे हैं. फिर भी, इंदौर के मिज़ाज़ में कोई तब्दीली नहीं.
भगवान करे. मॉल और प्रापर्टी की इस अंधी दौड़ में हमारी इंदौरी कल्चर बची रहे.
Great....padh kar Indore ki yaad aa gai...
ReplyDeleteAaj subah hi pohe khaye hain...mazaa aa gaya...
sad part is people from other cities dont respect the "Indori culture". No othe city can boast of having more than 200 varities of namkeen, sweets. food is excellent and so are people.
वाह इंदौरी कल्चर की बात ही कुछ ओर ही है।
ReplyDeleteजी विवेक. ये कल्चर इंदौरी के साथ ही चलती रहती है
ReplyDeleteतीन साल पहले आया था, इंदौर में तब से यहीं पर हूँ। आपने इंदौर की शब्दी तस्वीर बनाकर रख दी। सच में इंदौर का हाल कुछ ऐसा ही है।
ReplyDeleteइंदौर नहीं इंदोर।
ReplyDelete"आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नए लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है। एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।"
ReplyDeleteइंदोर के बारे में जानना अच्छा लागा ।
ReplyDeleteसही है. इंदौर नहीं इंदोर. इतने साल में बड़ी मुश्किल से ये मात्रा का उच्चारण सही कर पाया. अब आप वापस उन्हीं गलियों में ले जा रहे हैं. इंद्रपुर से इंदौर हुआ और शहर में बड़ी संख्या में बसे महाराष्ट्रियनों के लिए ये इंदूर है.
ReplyDeleteविक्षिप्त जी. हौंसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद. पर आपके उपनाम पर थोड़ा आश्चर्य हुआ है. अगर बुरा न मानें तो बताएं कि इसे क्यों चुना.
Indore ka chitr aankhon ke aage khinch gaya...kanonme bhi sunayi diya!
ReplyDeleteAankhon ne dekha..kanon ne suna! Wah!
ReplyDeleteWonderful post, Akhilesh. So glad to know Indore's spirit hasn't changed, despite the changing appearances on it.
ReplyDeleteSounds like a place I would love to visit.
Aapka bahut dhanywaad is post ke liye indori logo ko indore ke baare me padana bahut accha laga..!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
sab kuch badal raha hai, indore bhi, lekin kya aap indore me kya-kya khash hai, iske bare me nahi batayenge...
ReplyDeleteटी वी पर आपकी रिपोर्ट देखते हैं! अब आपको पढ़ भी सकेंगे। अच्छी पोस्ट! आगे आैर भी बेहतर पढ़ने को मिलेगा। शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआप सब लोगों का हौंसला बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया. बिल्कुल अभी इंदौर धारावाहिक की कुछ किश्तें और लिखी जानी हैं. बहुत कुछ कहना है इंदौर के बारे में. आप ब्लॉग पर आते रहें, मैं आपको बताता रहूंगा.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
अखिलेश, - इंदौर में रहकर भी तुम्हारे नज़रिए से इंदौर देखना अच्छा लगा। चलो, कुछ तो मौका मिला तुम्हें यह बदला हुआ इंदौर देखने का। बहुत कुछ है जो नहीं भी बदला ... तुमने भी महसूसा होगा ... होलकर कॉलेज जा पाए थे की नहीं ? - जयदीप कर्णिक
ReplyDeleteआपका लेख अच्छा लगा कृपया यहाँ भी पधारे और इंदौर के बारे में जानिए |
ReplyDeleteदेवेन्द्र गेहलोद