नोट बंदी का एक महीना पूरा होने के बाद लोगो में इसके प्रति उत्साह और समर्थन में धीरे-धीरे कमी आने लगी है। इसकी बड़ी वजह लोगों के हाथ में नकदी न आना है। बैंकों के सामने लाइनें वैसी ही लगी हैं जैसी शुरुआत में थीं। एटीएम से नकदी निकालने की सीमा न हटना और बैंकों से लोगों को पैसा न मिल पाना लोगों की हताशा को बढ़ा रहा है।
इस बीच, देश भर से नोट बंदी के छोटे उद्योग-धंधों, खेती-किसानी, रोजगार, व्यापार आदि पर विपरीत असर की खबरें तेजी से आने लगी हैं। शहरों से बड़ी संख्या में मजदूर और श्रमिक गांवों की ओर पलायन करने लगे हैं क्योंकि वो जहां काम करते हैं, वहां काम फिलहाल बंद कर दिया गया है।
ऐसे छोटे व्यापारी जिनका कामकाज सिर्फ नकदी पर निर्भर है, बड़ी संख्या में बेरोजगार होने लगे हैं। इसी बीच, टेलीविजन पर करोड़ों की तादाद में 2000 रुपए के नए नोट की देश भर से बरामद होती तस्वीरों ने लोगों को विचलित कर दिया है। वो सोच रहे हैं कि जिस 2000 रुपए के सिर्फ एक नोट के लिए वो ठंड में ठिठुरते दिन-रात बैंकों और एटीएम के सामने लगे हैं, रसूखदार लोग इन नोटों की गड्डियों से खेल कर उनकी भावनाओं पर चोट कर रहे हैं।
आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एलान के बाद लोगों की उम्मीदें बंधी थीं कि काले धन पर अंकुश लगेगा और जो लोग काले धंधे कर रहे हैं उन्हें सजा मिलेगी। इसी उम्मीद में लोगों ने तकलीफें झेलने के बावजूद पीएम का साथ दिया क्योंकि आज भी किसी दूसरे नेता की तुलना में उनकी साख लोगों के मन में बहुत ज्यादा है। लेकिन जैसा कहा जाता है कि आशा टूटने पर पहले निराशा होती है, जो जल्दी ही हताशा में बदल जाती है और इसकी परिणिति क्रोध में होती है। तो क्या नोट बंदी के नतीजों और असर से निराश और हताश लोग क्रोध की ओर बढ़ रहे हैं?
फिलहाल तो इसका उत्तर न है। लेकिन अगर जल्दी ही नकदी का संकट दूर नहीं हुआ तो ये हताशा गुस्से का रूप भी ले सकती है। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। खासतौर से उत्तर प्रदेश जैेसे बेहद महत्वपूर्ण राज्य में जहां अगले दो महीनों में चुनाव होने की संभावना है। साथ ही, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर मे भी चुनाव होने हैं। ऐसे में सबकी नजरें फिर प्रधानमंत्री पर टिक गई हैं कि वो लोगों के धैर्य और समर्थन का क्या जवाब देते हैं और उनकी आशा, हताशा में न बदले इसके लिए किन कदमों का एलान करते हैं।
पहला पड़ाव
इस दृष्टिकोण से पहला पड़ाव बेहद महत्वपूर्ण है। संभावना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन या चार जनवरी को लखनऊ में एक बड़ी रैली करेंगे। पहले यह रैली 24 दिसंबर को परिवर्तन यात्राओं के समापन पर होनी थी। लेकिन नोटबंदी के बाद इसे टाल दिया गया। वजह ये है कि पुराने नोट बैंकों में जमा कराने की अंतिम तारीख 30 दिसंबर है। तब सरकार को ये अंदाजा लग जाएगा कि कितने पुराने नोट बैंकों में आए। इससे एक आकलन हो सकेगा कि सरकार के हाथ में कितना पैसा आएगा।
इसी तरह काले धन को सफेद करने के लिए सरकार की नई गरीब कल्याण योजना के शुरुआती रुझान भी इस महीने के अंत तक मिल जाएंगे। यानी सरकार को औपचारिक रूप से ये पता चलेगा कि 8 नवंबर को जिस नोटबंदी का एलान किया गया था उसका जमीन पर क्या असर हुआ है। खुद प्रधानमंत्री ने भी लोगों से पचास दिन का समय मांगा था जिसकी मियाद इस महीने के अंत में पूरी हो जाएगी। ऐसे में माना जा रहा है कि जनवरी के पहले हफ्ते की रैली में प्रधानमंत्री कुछ महत्वपूर्ण एलान कर सकते हैं।
ये किसानों के लिए बड़ी राहत के एलान भी हो सकते हैं। साथ ही मजदूरों के लिए भी जिन्हें कहा जा सकता है कि उनका वेतन सीधे बैंक खातों में पहुंचेगा ताकि बिचौलये उनकी गाढ़ी मेहनत की कमाई बीच में न खा सकें। नोट बंदी कर पीएम ने बीजेपी की पारंपरिक ब्राह्मण-बनिया पार्टी की छवि को हमेशा के लिए बदल दिया है। बीजेपी अब गरीबों की पार्टी बन कर उभर रही है। ऐसे में गरीबों के लिए पीएम के एलान पर सबकी नजरें रहेंगी।
नोट बंदी को जबर्दस्त समर्थन देने वाले युवाओं के लिए भी प्रधानमंत्री कुछ घोषणाएं कर सकते हैं। ये माना जा रहा है कि पांच राज्यों में चुनाव फरवरी-मार्च में होंगे। ऐसे में पीएम की ये रैली बीजेपी के चुनावी भविष्य के लिए बेहद अहम होगी क्योंकि तब तक चुनाव कार्यक्रमों का एलान हो चुका होगा।
दूसरा पड़ाव
प्रधानमंत्री के जो एलान लखनऊ में होंगे उन्हें कानूनी जामा पहनाने के लिए दूसरा पड़ाव भी बेहद महत्वपूर्ण है। ये है एक फरवरी जिस दिन वित्त मंत्री अरुण जेटली आम बजट पेश करेंगे। इस बार बजट फरवरी के अंतिम दिन के बजाए पहले दिन पेश किया जा रहा है।
यह एक नई परंपरा है। इसके पीछे सोच ये है कि बजट को संसद की जल्दी मंजूरी मिले ताकि विकास कार्यों में तेजी आ सके। हालांकि नोट बंदी ने बजट के कार्यक्रम को झकझोर दिया है। सरकार को इस बजट में कई चीजों का ध्यान रखना है। जैसा शुरू में उल्लेख किया गया है कि नोट बंदी ने अर्थ व्यवस्था को चोट पहुँचाई है। आर्थिक विकास दर में मंदी, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, बेरोजगारी में बढोत्तरी, कृषि उत्पादन पर असर जैसे प्रभाव देखने को मिलेंगे।
ऐसे में वित्त मंत्री के सामने बड़ी चुनौती देश को ये विश्वास दिलाना होगा कि सब कुछ न सिर्फ ठीक है बल्कि भारत सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था का अपना स्थान बनाए रखेगा। उम्मीद है कि वित्त मंत्री मध्य वर्ग को भी आयकर में राहत दे सकते हैं। इसी तरह किसानों और मजदूरों के लिए भी वित्त मंत्री के बजट में कई सौगातें हो सकती हैं। ये ध्यान रहे कि बजट जिस समय पेश होगा तब आदर्श आचार संहिता लागू रहेगी। लेकिन अमूमन इसकी वजह से बजट घोषणाओं पर असर नहीं होता क्योंकि बजट पूरे देश के लिए होता है किसी एक या दो राज्य के लिए नहीं। किसी राज्य विशेष के लिए घोषणाओं से बचा जाता है।
अगले दो महीनों में पीएम और वित्त मंत्री के इन दो महत्वपूर्ण कदमों से नोट बंदी को लेकर अर्थ व्यवस्था पर पड़ने वाले असर को लेकर कई चीजें तय हो जाएंगी। जाहिर है इस बीच भी सरकार लोगों को राहत देने के लिए कदमों का एलान करती रहेगी। लेकिन बीजेपी नेताओं की उम्मीदें इन्हीं दो घटनाक्रमों पर टिकी हैं। इन्हीं से तय होगा कि लोगों का मूड कैसा रहेगा और नोट बंदी को लेकर चुनावों में ऊंट किस करवट बैठेगा।
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