Sunday, March 11, 2018

सोनिया क्यों नहीं बनीं पीएम, जल्दी ही मिल सकता है इसका जवाब




रशीद किदवई राजनीतिक पत्रकारिता का जाना-माना स्तंभ हैं। कोलकाता से प्रकाशित द टेलीग्राफ के एसोसिएट एडीटर किदवई कॉंग्रेस पार्टी के अंदरूनी घटनाक्रमों पर बेहद नज़दीक से नज़र रखते हैं। 



अभी तक उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जो राजनीतिक पत्रकारिता तथा घटनाक्रमों में दिलचस्पी रखने वालों के लिए किसी संदर्भ ग्रंथ से कम नहीं है। सोनिया- अ बायोग्राफी और 24, अकबर रोड- अ शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ़ द पीपुल बिहाइंड राइज़ एंड फॉल ऑफ़ कॉंग्रेस बेहद चर्चित पुस्तकें रही हैं। अब उनकी एक नई पुस्तक बैलट- टेन एपीसोड्स दैट हैव शेप्ड इंडियाज़ डेमोक्रेसी हाथों में आई है।

इस पुस्तक में भारतीय लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया यानी चुनाव को दिलचस्प ढंग से पाठकों के सामने रखने का प्रयास किया गया है। पहले चुनाव के लिए की गईं व्यापक तैयारियों की तस्वीर रखी गई है। कई रोचक जानकारियां भी हैं। जैसे- पहले आम चुनाव में हर उम्मीदवार के लिए एक बैलेट बॉक्स था। इसके लिए गोदरेज के कारखाने में लोहे के 12 लाख बॉक्स बनाए गए। नौ इंच के इन बक्सों को अगर एक के ऊपर एक रख दिया जाता तो इनकी ऊंचाई माउंट एवरेस्ट तक पहुंच सकती थी।

पहले चुनाव के लिए जवाहरलाल नेहरु ने 40 हजार किलोमीटर की यात्रा की और करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों को संबोधित किया। इस अभियान में उनकी बेटी इंदिरा गांधी उनके साथ रहीं और बाद में उन्होंने अपने पति फिरोज़ गांधी के चुनाव क्षेत्र रायबरेली का ज़िम्मा संभाला। हालांकि पुस्तक कहती है कि अगर फिरोज़ गांधी की इंदिरा से शादी नहीं भी नहीं हुई होती तो भी उन्हें कॉंग्रेस से टिकट मिल जाता।

मौजूदा लोक सभा में कोई भी नेता विपक्ष नहीं है। पहली लोक सभा में भी कोई नेता विपक्ष नहीं था। पुस्तक के अनुसार इसकी वजह पहली लोक सभा के अध्यक्ष जी वी मावलंकर का नियम था जिसमें कहा गया था कि नेता विपक्ष का पद प्राप्त करने के लिए सदन की कुल संख्या के दस फीसदी सांसद होने आवश्यक हैं। पुस्तक आगे कहती है कि इसी नियम के चलते 17 साल तक लोक सभा में कोई भी नेता विपक्ष नहीं रहा।

पुस्तक में ऐसे दिलचस्प उदाहरणों और घटनाक्रमों का सिलसिला पाठकों को बांधे रखता है। कहा जाता है कि पत्रकारिता जल्दबाज़ी में लिखा गया इतिहास है। लेकिन क़िदवई की पुस्तक पढ़कर लगता है कि प्रामाणिक इतिहास से रूबरू हो रहे हैं। सभी ऐतिहासिक तथ्यों को संदर्भों के साथ पिरोया गया है जो पाठकों को पूरी किताब एक ही सांस में पढ़ जाने के लिए प्रेरित करते हैं। 

जैसा कि नाम से स्पष्ट है, पुस्तक में पिछले सत्तर साल के उन दस महत्वपूर्ण घटनाक्रमों तथा शख्सियतों का ज़िक्र है जिनका चुनावों पर गहरा असर प़ड़ा। इसमें इंदिरा गांधी के गूंगी गुड़िया से गरीबी हटाओ तक की यात्रा का विस्तार से वर्णन किया गया है तो वहीं दक्षिणपंथी ताकतों के उभार का भी सिलसिलेवार ढंग से चित्रण किया गया। इंदिरा, राजीव गांधी के साथ ही राष्ट्रीय परिदृश्य पर अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी के छाने के कारणों का उल्लेख है तो वहीं क्षेत्रीय राजनीति में अपने दम से छा जाने वाले बाल ठाकरे, ममता बनर्जी और मायावती जैसे दिग्गजों का भी नज़दीकी से आकलन किया गया है।

2004 में कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन की जीत और सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद को अस्वीकार करने के घटनाक्रम पर भी किदवई ने विस्तार से लिखा है। सोनिया गांधी ने यह पद क्यों अस्वीकार किया, इसका जवाब अभी तक खोजा जा रहा है। हालांकि किदवई का अपना अलग आकलन है और वो इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करते हैं।

किदवई की यह महत्वपूर्ण पुस्तक जल्दी ही पाठकों के बीच होगी। इसे  हैचेट इंडिया ने प्रकाशित किया है।

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