‘’बीजेपी मज़बूत होगी तो सहयोगी पार्टियां खुद ब
खुद चली आएंगी।‘’ ये कहना था बीजेपी के शीर्ष रणनीतिकारों का।
लेकिन चुनाव नजदीक आते ही पार्टी ने कई राज्यों में छोटे-छोटे गठबंधन करना शुरू कर
दिया है। इन चुनाव पूर्व गठबंधनों की खास बात ये है कि बीजेपी मिल कर चुनाव लड़ना
चाहती है। इन सहयोगी पार्टियों के साथ सीटों का बंटवारा करने में उसे दिक्कत नहीं
है।
बीजेपी ने बिहार में
रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ सीटों के तालमेल की बात शुरू की है।
पासवान की लाल प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ बात चल रही थी।
लेकिन सीटों की संख्या और पसंद को लेकर बात अभी तक नहीं बन पाई है। इस बीच पासवान
ने बीजेपी के साथ भी चर्चा शुरू की और बीजेपी ने पासवान को लेकर उत्साह दिखाया है।
पासवान के साथ आने से नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत तौर पर भी फायदा होगा क्योंकि
गुजरात दंगों के बाद वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले पासवान सबसे पहले
मंत्री थे। राज्य में उनके करीब सात-आठ फीसदी वोट हैं।
असम में बीजेपी एक
बार फिर असम गण परिषद के साथ चुनावी गठबंधन करना चाह रही है। पिछले लोक सभा चुनाव
में इसी गठबंधन के चलते बीजेपी ने राज्य में चार सीटें जीती थीं। लेकिन एजीपी को
सिर्फ एक सीट मिली थी। एजीपी को लगता है कि उसके वोट तो बीजेपी को ट्रांसफर हो
जाते हैं मगर बीजेपी के वोट उसे नहीं मिल पाते। इसलिए वो तालमेल के लिए इच्छुक
नहीं है। लेकिन बीजेपी का कहना है कि हाल में असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों
में नरेंद्र मोदी की रैलियों में जुटी भारी भीड़ बताती है कि वहां के लोग मोदी को
प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं। इसीलिए एजीपी और बीजेपी साथ आ सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में
बीजेपी कुछ छोटी-छोटी पार्टियों से तालमेल कर सकती है। महाराष्ट्र में शिवसेना,
आरपीआई अठवले और स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के साथ महागठबंधन बन चुका है।
कोशिश है कांग्रेस
विरोधी वोटों के बंटवारे को रोकने की। और पूरे देश में ये संदेश देने की भी कि
मोदी को नेता घोषित करने के बावजूद बीजेपी खुद को सेक्यूलर कहने वाली कई पार्टियों
के लिए अछूत नहीं है।
No comments:
Post a Comment