जून के पहले हफ्ते मैं सपरिवार कुमाऊं की आठ दिन की यात्रा पर गया था। इस यात्रा की कई खट्टी-मीठी यादें हैं जो इस ब्लॉग के माध्यम से आप सब लोगों से बांट रहा हूं।
एक जून 2015 पहला दिन
सुबह सात बजे हम रानीखेत के लिए निकले। मैं खुद गाड़ी चला रहा था। गूगल मैप ने एक दूसरा रास्ता सुझाया। रामपुर से स्वार-बाजपुर होते हुए कालाढूंगी फिर नैनीताल और रानीखेत। ये एक शॉर्ट कट है और इससे काफी समय बच जाता है। बाजपुर से पहले पांच किलोमीटर सड़क काफी खराब है। वहां गाड़ी चलाते समय सिर्फ एक ही सवाल दिमाग में आता है- ये गड्ढे कब खत्म होंगे? खैर शाम चार बजे हम रानीखेत पहुंचे। मैंने अपनी इस पूरी यात्रा में कुमाऊं मंडल विकास निगम के टूरिस्ट रेस्ट हाऊस में रुकने का फैसला किया था और वहां एडवांस बुकिंग कराई थी। लिहाज़ा रानीखेत में केएमवीएन के चिलियानौला टीआरएच में ही पहुंचे। थोड़ी देर बाद सूर्यास्त होने वाला था।
रानीखेत में सूर्यास्त |
दो जून 2015 दूसरा दिन
सुबह नाश्ता कर करीब दस बजे हम रानीखेत घूमने निकले। फलों का मशहूर बगीचा चौबटिया गार्डन देखा और वहां से आड़ू और आलूबुखारे खरीदे। यहां से बुरांश का ज्यूस भी लिया जिसने बाद के दिनों की पूरी यात्रा में हमारा भरपूर साथ दिया। पहाड़ों की रानी रानीखेत की सुंदरता में चार चांद लगाने के लिए वहां स्वच्छता का खास ध्यान रखने के लिए दिन-रात मेहनत करने वाले कुमाऊँ रेजीमेंट के विभिन्न ठिकानों को देखते हुए गोल्फकोर्स देखा और फिर चौकोड़ी के लिए निकल गए। रास्ते में रानीखेत के घने जंगलों की सुंदरता ने मन मोह लिया।
रानीखेत की सुंदरता |
बागेश्वर में सरयू नदी |
बागेश्वर से चौकोड़ी के रास्ते पर पहली बार हिमालय के दर्शन हुए। वैसे तो रानीखेत से भी हिमालय की पर्वतमालाएं दिखती हैं मगर गर्मियों में ऐसा कम ही हो पाता है।
चौकोड़ी के रास्ते पंचचूली के दर्शन |
केएमवीएन चौकोड़ी |
तीन जून 2015 तीसरा दिन
केएमवीएन चौकोड़ी के मैनेजर जोशीजी बेहद मिलनसार हैं। उन्होंने हमें सुझाव दिया कि हम अगले दिन पाताल भुवनेश्वर जाएं। सुबह नाश्ता करने के बाद हम पाताल भुवनेश्वर के लिए निकले। बीच में सड़क बहुत खराब है। कई लोग इसकी बुरी हालत देखते हुए वापस आ जाते हैं। खैर हम चलते रहे। पाताल भुवनेश्वर से सात किलोमीटर से पहले सड़क ठीक है। वहां प्रवेश द्वार से रेंगते हुए करीब तीस फीट नीचे उतरना पड़ता है। पानी के रिसाव से लाइम स्टोन की चट्टानों में बेहद सुंदर आकृतियां बनीं हैं। ये पूरी यात्रा बेहद रोमांचक है और यहां जरूर जाना चाहिए। पौराणिक कथाएं भी इसकी साथ जोड़ी गई हैं इसलिए श्रद्धालुओं का भी तांता बंधा रहता है। चूंकि अंदर कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं है इसलिए प्रवेश द्वार का ही फोटो लिया है।
पाताल भुवनेश्वर गुफाओं का प्रवेश द्वार |
चार जून 2015 चौथा दिन
अब हम मुंस्यारी के रास्ते पर हैं। सड़क संकरी हो गई है और प्राकृतिक सौंदर्य चार गुना बढ़ गया है। पूरे रास्ते बीच-बीच में सड़क किनारे छोेटे-छोटे झरने हैं जिनका पानी सड़़क पर बहता है। इच्छा होती है पूरे रास्ते गाड़ी रोकते चलें। मुंस्यारी से पहले आता है बिर्थी जल प्रपात। ये दूर से ही दिखता है। नजदीक जाने पर इसकी गर्जना सिरहन पैदा करती है।
बिर्थी जल प्रपात |
पांच जून 2015 पांचवा दिन
मुंस्यिारी केएमवीएन की खास बात ये है कि जैसे ही आप कमरे से बाहर नजर डालते हैं पंचचुली चोटियां इतनी पास दिखती हैं जैसे उन्हें हाथ बढ़ा कर छू सकते हैं। मौसम तुनकमिज़ाजी है। पल में तोला पल में माशा। सुंदरता इस कदर कि इस बात पर भरोसा होता है कि ब्रम्हांड के सबसे बड़े चित्रकार ने बहुत फुर्सत में इस चित्र को बनाया है।
मुंस्यिारी का विहंगम दृश्य |
मुंस्यिारी सही मायनों में पर्यटकों के लिए स्विटजरलैंड से कम नहीं है। यहां से ट्रैकिंग के कई रास्ते हैं। यहीं हैलीपेड पर हमारी मुलाकात कोलकाता के स्वपन कुमार पाल से हुई जो नंदा देवी के एडवांस बेस कैंप तक ट्रैकिंग कर आए थे। उन्होंने फोटो दिखाए तो मन ललचा उठा। फेसबुक पर उन्हें दोस्त बनाया और अब इन दुर्लभ फोटो का दीदार करते हैं। यहीं नंदा देवी मंदिर में गाड़ी सड़क पर खड़ी कर दर्शन करने गए और आए तो देखा कि किसी ने पीछे का शीशा तोड़ कर पत्नी के पर्स को खोल कर चुराने की कोशिश की। जब उसमें कुछ नहीं मिला तो छाता ही उठा ले गया। इस घटना से मन खट्टा हो गया।
ये एक अपवाद है |
छह जून 2015 छठा दिन
मुंस्यिारी में दो रात बिताने के बाद हमने रुख किया बिनसर का। ये भी बहुत रोमांचक यात्रा है। केएमवीएन के आर्य साहब बिनसर केएमवीएन से कुछ महीने पहले ही आए थे। उन्होंने धौलचीना से एक शार्टकट बताया और गूगल मैप ने उनका समर्थन किया। लिहाजा अल्मोड़ा बायपास से जाने के बजाए इस रास्ते से गए और दो घंटे बचा लिए। बिनसर सेंचुरी गेट से केएमवीएन बिनसर करीब 14 किलोमीटर है। रास्ते भर झींगुरों की तेज़ आवाज़ और लंगूर स्वागत करते हैं। बियाबान, सुनसान और घने जंगलों के बीच लगता है किसी दूसरी ही दुनिया में पहुँच गए हैं। जब पहुंचे तो सूर्यास्त होने वाला था। लिहाजा पहले सनसेट प्वाइंट ही गए।
बिनसर में सूर्यास्त |
बिनसर केएमवीएन की खास बात ये है कि वहां शाम को सिर्फ दो ही घंटे यानी सात से नौ बजे तक बिजली रहती है। उसके बाद मोमबत्ती की रोशनी, पूर्णिमा के चांद का उजाला और जंगल से आती जंगली जानवरों की आवाज़ें रोमांच को दोगुना कर देती है।
सात जून 2015 सातवां दिन
अब हम दिल्ली के रास्ते पर हैं। मगर पहाड़ों से मन नहीं भरा। इच्छा हुई कि एक रात नैनीताल जरूर रुके। ये जानते हुए भी कि रविवार है और आधी दिल्ली नैनीताल में होगी, बच्चों की वजह से नैनीताल रुकने का फैसला हुआ। मित्र अमिताभ सिंह ने मदद की और अपने होटल में एक कमरा किसी तरह से उपलब्ध करा दिया। बच्चों को नैनी झील में बोटिंग करने में बहुत मजा आया।
नैनी झील से ऐसा दिखता है नैनीताल |
आठ जून 2015 आठवां दिन
सोमवार नैनीताल का ज़ू बंद रहता है। उसे देखने की इच्छा मन में ही लिए बच्चों के साथ मालरो़ड का एक चक्कर लगाने के बाद घर के लिए निकल लिए। इस बार भी गूगल मैप की मदद से प्रयोग किया। वापसी में कालाढूंगी से रामनगर और काशीपुर होते हुए मुरादाबाद का रास्ता लिया। इससे बाजपुर के पहले की पांच किलोमीटर की खराब सड़क से बचाव हुआ और समय भी कम लगा।
इस तरह हिमालय की गोद में पूरा एक हफ्ता बिताने के बाद घर वापसी हुई। उत्तराखंड के जिस हिस्से की हमने यात्रा की वो पर्यटन की लिहाज से बहुत लोकप्रिय नहीं है। मगर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। आपको मौका लगे तो वहां जरूर जाएं।
(All pictures taken by Apple iPhone 6 Plus)