Sunday, April 27, 2014

बासी कढ़ी में आया उबाल


लोक सभा चुनाव में अभी तीन दौर का मतदान बाकी है। मतों की गिनती 16 मई को होगी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यूपीए की सरकार फिर बनने का दावा कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के भीतर से ही आवाज़ें उठना शुरु हो गई हैं कि लेफ्ट फ्रंट को साथ लेकर सरकार बनाई जानी चाहिए। इसी के साथ तीसरे मोर्चे, वैकल्पिक मोर्चे या सेक्यूलर सरकार बनाने के लिए खिचड़ी पकाने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है।

ऐसी कोई भी सरकार बिना कांग्रेस या बीजेपी के समर्थन के नहीं बन सकती। जहां तक बीजेपी का प्रश्न है, उसकी रणनीति स्पष्ट है- अगर उसे सरकार बनानी है तो नरेंद्र मोदी के ही नेतृत्व में बनानी है नहीं तो नहीं बनानी है। जबकि नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार दिख रही है। वरना कोई कारण नहीं कि ऐन चुनावों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तीसरे मोर्चे या सेक्यूलर सरकार के गीत गाने लगे।

पहला बयान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का आया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अगली सरकार बनाने के लिए तीसरे मोर्चे के साथ हाथ मिलाएगी। फिर बयान आया विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद का। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार बनाने के लिए या तो तीसरे मोर्चे का समर्थन ले सकती है या फिर उसे समर्थन दे सकती है। शनिवार को ही सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने मिलती-जुलती बात कही। उन्होंने ये इशारा तक दे दिया कि उनकी पार्टी ऐसी किसी सरकार में शामिल भी हो सकती है।

जिस तीसरे मोर्चे की बात बार-बार कही जा रही है उसमें मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, एम करुणानिधि, लेफ्ट फ्रंट, जगनमोहन रेड्डी, के सी चंद्रशेखर राव, शरद पवार जैसों के नाम लिए जाते हैं। जयललिता, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक का क्षेत्रीय फ्रंट या वैकल्पिक मोर्चा भी बीच-बीच में ज़ोर मारता दिखता है। जबकि मायावती के बारे कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।

जाहिर है जब तक लोक सभा चुनाव के परिणाम नहीं आते, ये सब बातें सिर्फ काल्पनिक ही हैं। लेकिन अभी तक के जनमत सर्वेक्षण अगर सच होते हैं तो ऐसे में तीसरे मोर्चे की या तीसरे मोर्चे की मदद से कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना बहुत कम दिखाई देती है। एनडीए और यूपीए की सीटों में करीब सौ सीटों के अंतर की संभावना व्यक्त की जा रही है और एनडीए को 272 के जादुई आंकड़े के नज़दीक पहुँचता दिखाया जा रहा है। ऐसे में यूपीए के लिए तीसरे मोर्चे की पार्टियों को साथ लेकर भी सरकार बनाने की बात दूर की कौड़ी लगती है।

इसकी बड़ी वजह ये है कि ऐसी कोई सरकार बनने की संभावना कम है जिसमें ममता बनर्जी और लेफ्ट फ्रंट या जयललिता-करुणानिधि एक साथ हों। इसी तरह लालू-नीतीश या मुलायम-मायावती का साथ आना राजनीतिक रूप से असंभव ही लगता है। ये ज़रूर है कि मुलायम और मायावती दोनों ही यूपीए – दो को बाहर से समर्थन दे रहे हैं। लेकिन उसकी वजह ये है कि दोनों ही एक-दूसरे को सरकार से बाहर रखना चाहते हैं। ये मानना कि जिस सरकार में उनमें से कोई एक शामिल हो, उसे दूसरा समर्थन देगा, वास्तविकता से परे है।

महत्वपूर्ण बात ये है कि तीसरे या वैकल्पिक मोर्चे की संभावित पार्टियों में सिर्फ जयललिता, ममता बनर्जी और नवीन पटनायक के ही अच्छे प्रदर्शन की संभावना व्यक्त की जा रही है। जबकि मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों ही उत्तर प्रदेश में बीजेपी से पीछे बताए जा रहे हैं। हर चुनाव में तीसरे मोर्चे की सरकार की बात करने वाले और उसकी धुरी बनने वाले लेफ्ट फ्रंट की अपनी हालत पतली है। ऐसे में सवाल ये है कि यूपीए का साथ लेकर भी ये मोर्चा बहुमत के आंकड़े तक किस तरह पहुँच पाएगा?


जिस सीपीएम ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर यूपीए एक सरकार से समर्थन वापस लिया था वो न सिर्फ कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के लिए इच्छुक दिख रही है बल्कि सरकार में शामिल होने का संकेत भी दे रही है। इसी तरह, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चुनाव के बाद बनने वाली तस्वीर डराने लगी है और वो चुनावों के बीच ही तीसरे मोर्चे की बात करने लगे हैं। इसमें शक नहीं है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए कई ऐसी पार्टियां साथ आ सकती हैं जो एक-दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ रही हैं। ऐसी किसी भी सरकार के स्थायित्व को लेकर सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। पर ये भी तय है कि अगर एनडीए बहुमत से दूर रहकर ममता, जयललिता, मायावती या नवीन पटनायक के समर्थन का मोहताज रहता है तो उसकी सरकार की उम्र पाँच साल होगी या नहीं, ये कह पाना मुश्किल होगा। वैसे इस चुनाव में मतदान का बढ़ा प्रतिशत शायद ये गवाही दे रहा है कि जनता स्थायी सरकार के पक्ष में ही है। 

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